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तेलंगाना पे भिड़े, अपनी मुट्ठी तान।

अपने भारत देश की, लगी दाँव पे आन।।

 

कोई तोड़े काँच को, पत्र लिया जो छीन।

आगे पीछे भैंस के, बजा रहे हैं बीन।।

 

मिर्चें लेकर हाथ में, करे आँख में वार।

मानवता इस हाल पे, अश्रु बहाये चार।।

 

हिस्सा जाता देख कर, हुये क्रोध से लाल।

बरसीं गंदी गालियाँ, ये संसद का हाल।।

 

चढ़ा करेला नीम पर, अपनी छाती ठोक।

शक्ति संग सत्ता मिली, रोक सके तो रोक।।

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 26, 2014 at 3:34pm

तेलंगाना पे भिड़े, अपनी भृकुटी तान।
अपने हिन्दुस्तान की, लगी दाँव पे आन।।
:-))
वैसे, भृकुटि सही शब्द है.
अपने हिन्दुस्तान की .. इस चरण को कृपया फिर से देखिये

कोई तोड़े काँच को, पत्र लिया जो छीन।
आगे पीछे भैंस के, बजा रहे हैं बीन।।
हा हा हा हा.. बहुत खूब !

मिर्चें निकाल हाथ में, करे आँख में वार।
मानवता इस हाल पे, अश्रु बहाये चार।।
बढिया... ’निकाल’ जगण (१२१) है जो दोहा के विषम चरण में अमान्य है. लेकिन शब्द-संयोजन के प्रवाह में कलों के सम बन जाने के कारण वह चरण दोष रहित है. वैसे, इस ओर सचेत रहा करें.
 
बँटवारे की बात पे, हुये क्रोध से लाल।
बरसीं गंदी गालियाँ, ये संसद का हाल।।
यह दोहा बहुत कुछ कहता हुआ है, भाईजी. वैसे, बँटवारे शब्द को अधिक व्यापक क्यों न बनायें जो कि आपके दोहे का मंतव्य भी है.

चुन के आये देखिये, कैसे-कैसे लोग।
इनके मन में खोट है, ये समाज के रोग।।
हम्म्म.. बात तो सही है. मगर दोहा सपाटबयानी नहीं हो गया है.

भाई शिज्जूजी, छंदों पर विशेषकर दोहों पर आपकी कोशिश मुग्ध करती है. बहुत-बहुत बधाई भाई.


एक बात:
छंदों में पे को पर ही लिखा जाय.

पुनः बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 10, 2014 at 9:08am

मेरी रचना को मान देने के लिये मैं आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। स्नेह यूँ ही बनाये रखें।
सादर,

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 6, 2014 at 10:58pm

बहुत ही सुंदर आदरणीय शिज्जू भाई..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 6, 2014 at 9:50pm

बेहद शर्मसार करते विषय पर, बहुत सुंदर दोहावली . हार्दिक बधाई आपको

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 6, 2014 at 9:07pm

आ0 शिज्जू  भार्इ जी,  बहुत सुन्दर दोहावली---!   हार्दिक बधार्इ स्वीकारें।  सादर,

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 5, 2014 at 4:38pm

चुन के आये देखिये, कैसे-कैसे लोग।

इनके मन में खोट है, ये समाज के रोग।।

किसने चुना. क्या आपका प्रत्याशी श्रेष्ठ था ?

यदि हाँ यो ठीक वर्ना इस बार गलती न हो, 

वोट जरूर करियेगा सादरबधाई 

Comment by Sarita Bhatia on March 5, 2014 at 4:34pm

अपने संसद के लिए लगी दाँव पे आन 

शिज्जू भाई देख लो मेरा हिन्द महान /


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 5, 2014 at 3:55pm

आदरणीय शिज्जू भाई , दोहा वली की बहुत सुन्दर रचना हुई है ॥

शिज्जू भाई आपके , दोहे हुये कमाल

सुन्दर शिल्प निभा गये , सुन्दर रहा खयाल ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 5, 2014 at 3:01pm

आदरणीय शिज्जू जी ..बेहद घृणित कृत्य को बहुत ही सुंदर तरीके से पेश किया है आपने आपको सादर बधाई के साथ 

Comment by Vivek Jha on March 5, 2014 at 1:18pm

चुन के आये देखिये, कैसे-कैसे लोग।

इनके मन में खोट है, ये समाज के रोग।……… जबरदस्त दोहा है 

कृपया ध्यान दे...

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