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ग़ज़ल- जिंदगी कितनी हंसीं है आओ आकर देख लो

जिंदगी कितनी हंसीं है आओ आकर देख लो
एक पिंजराबंद पंछी को उड़ाकर देख लो

तुम हमें समझा रहे हो बेवफाई का सबब?
फैसला हो जायेगा नज़रें मिलाकर देख लो

मंजिलें जब पास हों तब और करती हैं भ्रमित
जो न हो विश्वास क़दमों को बढ़ा कर देख लो

हम निहत्थे हैं मगर माँ की दुवाएँ साथ हैं
जीत किसकी, हार किसकी आज़मा कर देख लो

माँ मुझे मालूम है हालात कुछ अच्छे नहीं
हौसला हो जायेगा गर मुस्कुरा कर देख लो

लोग मुझसे पूछते हैं शायरी कैसे लिखें
दर्द को पन्ने पे रखकर गुनगुना कर देख लो

- मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on March 24, 2014 at 1:32am

एक और अच्छी ग़ज़ल पढने को मिली ...
शायरी कैसे लिखें पर आपको पहले ही स्पष्ट कर चुका हूँ अगर सही न किया हो तो अवश्य कर लें

Comment by Anurag Anubhav on March 23, 2014 at 12:41pm
सबसे पहले सभी अग्रजों और गुरुजनों को प्रणाम... जिन्होंने ग़ज़ल पर अपनी प्रतिक्रिया दी और अपने महत्त्वपूर्ण विचार रखे, मैं उन सभी का आभारी हूँ.. उन सभी विद्वजनों को ह्रदय की अतल गहराइयों से धन्यवाद...
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी.. कोशिश करूँगा उपस्थिति दीर्घकालिक हो..
अब तक धन्यवाद न ज्ञापित कर पाने का मुझे बेहद अफ़सोस है.. परन्तु कुछ दिनों की व्यस्तता और शेष है.. विद्यार्थी हूँ और परीक्षाएं चल रही हैं.. इसलिए सभी प्रतिक्रियाओं पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे पाया... मुझे माफ़ करें.. जल्द ही सबसे मुख़ातिब होऊंगा पूरे समय के साथ... तब तक के लिए... सभी का धन्यवाद.. शुक्रिया... आभार...

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 23, 2014 at 2:10am

भाई अनुरागजी, एक अच्छी गजल के लिए हार्दिक बधाई.

एक बात, आपकी उपस्थिति दीर्घकालिक होनी चाहिये. अपनी ग़ज़ल पर आयी टिप्पणियों पर अपने धन्यवाद ज्ञापित नहीं किया है.

शुभेच्छाएँ.

Comment by Akash Verma on March 19, 2014 at 5:09pm

bahut khoob bhai sahab  

Comment by भुवन निस्तेज on March 16, 2014 at 10:52pm

अद्भुत भाव....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2014 at 9:26pm

शानदार जिंदाबाद नायाब ग़ज़ल हर शेर लाजबाब बह्र पर कसी हुई एक जगह इस्स्लाह देना चाहूंगी ---

एक पिंजराबंद पंछी को उड़ाकर देख लो-----एक पिंजर बद्ध पंछी को उड़ाकर देख लो ---करेंगे तो बह्र सही हो जायेगी 

बाकी किसी अशआर में कोई कमी नहीं है 

हम निहत्थे हैं मगर माँ की दुवाएँ साथ हैं
जीत किसकी, हार किसकी आज़मा कर देख लो----वाह्ह्ह्हह 

माँ मुझे मालूम है हालात कुछ अच्छे नहीं
हौसला हो जायेगा गर मुस्कुरा कर देख लो----लाजबाब ,दिल छू गया ये शेर 

लोग मुझसे पूछते हैं शायरी कैसे लिखें
दर्द को पन्ने पे रखकर गुनगुना कर देख लो----सुभानल्लाह  

इस शानदार ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूलें अनुराग अनुभव जी 

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 12, 2014 at 10:46am

जिंदाबाद..जिंदाबाद...अनुभव भाई जिंदाबाद....

लोग मुझसे पूछते हैं शायरी कैसे लिखें
दर्द को पन्ने पे रखकर गुनगुना कर देख लो...गजल पढ़ कर मजा आ गया

Comment by Saarthi Baidyanath on March 4, 2014 at 8:45am

हम निहत्थे हैं मगर माँ की दुआएं साथ हैं
जीत किसकी, हार किसकी आज़मा कर देख लो..... जिंदाबाद साहब ! 

Comment by नादिर ख़ान on March 3, 2014 at 9:30pm

जिंदगी कितनी हंसीं है आओ आकर देख लो
एक पिंजराबंद पंछी को उड़ाकर देख लो

तुम हमें समझा रहे हो बेवफाई का सबब?
फैसला हो जायेगा नज़रें मिलाकर देख लो

वाह  वाह  अदरणीय  अनुराग जी, बहुत ही उम्दा गज़ल कही , भिन्न भिन्न खूबसूरत चित्र खींचें , पढ़ कर अतिप्रसन्नता हुयी बहुत बधाई आपको ......

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on March 2, 2014 at 8:38pm

भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति......................................

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