For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- जिंदगी कितनी हंसीं है आओ आकर देख लो

जिंदगी कितनी हंसीं है आओ आकर देख लो
एक पिंजराबंद पंछी को उड़ाकर देख लो

तुम हमें समझा रहे हो बेवफाई का सबब?
फैसला हो जायेगा नज़रें मिलाकर देख लो

मंजिलें जब पास हों तब और करती हैं भ्रमित
जो न हो विश्वास क़दमों को बढ़ा कर देख लो

हम निहत्थे हैं मगर माँ की दुवाएँ साथ हैं
जीत किसकी, हार किसकी आज़मा कर देख लो

माँ मुझे मालूम है हालात कुछ अच्छे नहीं
हौसला हो जायेगा गर मुस्कुरा कर देख लो

लोग मुझसे पूछते हैं शायरी कैसे लिखें
दर्द को पन्ने पे रखकर गुनगुना कर देख लो

- मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 913

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on March 24, 2014 at 1:32am

एक और अच्छी ग़ज़ल पढने को मिली ...
शायरी कैसे लिखें पर आपको पहले ही स्पष्ट कर चुका हूँ अगर सही न किया हो तो अवश्य कर लें

Comment by Anurag Anubhav on March 23, 2014 at 12:41pm
सबसे पहले सभी अग्रजों और गुरुजनों को प्रणाम... जिन्होंने ग़ज़ल पर अपनी प्रतिक्रिया दी और अपने महत्त्वपूर्ण विचार रखे, मैं उन सभी का आभारी हूँ.. उन सभी विद्वजनों को ह्रदय की अतल गहराइयों से धन्यवाद...
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी.. कोशिश करूँगा उपस्थिति दीर्घकालिक हो..
अब तक धन्यवाद न ज्ञापित कर पाने का मुझे बेहद अफ़सोस है.. परन्तु कुछ दिनों की व्यस्तता और शेष है.. विद्यार्थी हूँ और परीक्षाएं चल रही हैं.. इसलिए सभी प्रतिक्रियाओं पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे पाया... मुझे माफ़ करें.. जल्द ही सबसे मुख़ातिब होऊंगा पूरे समय के साथ... तब तक के लिए... सभी का धन्यवाद.. शुक्रिया... आभार...

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 23, 2014 at 2:10am

भाई अनुरागजी, एक अच्छी गजल के लिए हार्दिक बधाई.

एक बात, आपकी उपस्थिति दीर्घकालिक होनी चाहिये. अपनी ग़ज़ल पर आयी टिप्पणियों पर अपने धन्यवाद ज्ञापित नहीं किया है.

शुभेच्छाएँ.

Comment by Akash Verma on March 19, 2014 at 5:09pm

bahut khoob bhai sahab  

Comment by भुवन निस्तेज on March 16, 2014 at 10:52pm

अद्भुत भाव....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2014 at 9:26pm

शानदार जिंदाबाद नायाब ग़ज़ल हर शेर लाजबाब बह्र पर कसी हुई एक जगह इस्स्लाह देना चाहूंगी ---

एक पिंजराबंद पंछी को उड़ाकर देख लो-----एक पिंजर बद्ध पंछी को उड़ाकर देख लो ---करेंगे तो बह्र सही हो जायेगी 

बाकी किसी अशआर में कोई कमी नहीं है 

हम निहत्थे हैं मगर माँ की दुवाएँ साथ हैं
जीत किसकी, हार किसकी आज़मा कर देख लो----वाह्ह्ह्हह 

माँ मुझे मालूम है हालात कुछ अच्छे नहीं
हौसला हो जायेगा गर मुस्कुरा कर देख लो----लाजबाब ,दिल छू गया ये शेर 

लोग मुझसे पूछते हैं शायरी कैसे लिखें
दर्द को पन्ने पे रखकर गुनगुना कर देख लो----सुभानल्लाह  

इस शानदार ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूलें अनुराग अनुभव जी 

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 12, 2014 at 10:46am

जिंदाबाद..जिंदाबाद...अनुभव भाई जिंदाबाद....

लोग मुझसे पूछते हैं शायरी कैसे लिखें
दर्द को पन्ने पे रखकर गुनगुना कर देख लो...गजल पढ़ कर मजा आ गया

Comment by Saarthi Baidyanath on March 4, 2014 at 8:45am

हम निहत्थे हैं मगर माँ की दुआएं साथ हैं
जीत किसकी, हार किसकी आज़मा कर देख लो..... जिंदाबाद साहब ! 

Comment by नादिर ख़ान on March 3, 2014 at 9:30pm

जिंदगी कितनी हंसीं है आओ आकर देख लो
एक पिंजराबंद पंछी को उड़ाकर देख लो

तुम हमें समझा रहे हो बेवफाई का सबब?
फैसला हो जायेगा नज़रें मिलाकर देख लो

वाह  वाह  अदरणीय  अनुराग जी, बहुत ही उम्दा गज़ल कही , भिन्न भिन्न खूबसूरत चित्र खींचें , पढ़ कर अतिप्रसन्नता हुयी बहुत बधाई आपको ......

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on March 2, 2014 at 8:38pm

भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति......................................

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service