For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- रात इक जुगनू हवा में कुलबुलाता रह गया

रात इक जुगनू हवा में कुलबुलाता रह गया
रौशनी के वास्ते खुद को जलाता रह गया

पेट की मजबूरियां थीं, हम शहर में बस गए
गाँव हमको ख्वाब में वापस बुलाता रह गया

कोठियाँ बेशक मेरे बच्चों ने कर दी हैं खड़ी
पर तुम्हारी याद का उसमें अहाता रह गया

आज मुझको काम से इक रोज की फुर्सत मिली
आज दिनभर लाडला बस मुस्कुराता रह गया

धन की देवी आपके घर क्यों कभी रुकती नहीं
चौक पर बैठा नजूमी ये बताता रह गया

आँख का हर प्रश्न आंसू की सतह में बह गया
और बेटा देश से बाहर कमाता रह गया.
- अनुराग 'अनुभव' ( मौलिक)

Views: 1295

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by suvarna on April 30, 2014 at 8:27am

आँख का हर प्रश्न आंसू की सतह में बह गया
और बेटा देश से बाहर कमाता रह गया........ बहुत ख़ूब .....

Comment by savitamishra on April 17, 2014 at 7:16pm

बहुत ही सुन्दर

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 13, 2014 at 1:18pm

 क्या खूब रचना है लाजवाब गुरुजनों के सुझावों पे ध्यान दें
शुभकामनाएं

Comment by Ajay Agyat on April 9, 2014 at 7:38pm

बहुत उम्दा 

Comment by PRAMOD SRIVASTAVA on March 28, 2014 at 11:20pm

bahut sundarAnurag ji . aap ki gajal  jhakjhor deti hai

Comment by Zaif on March 28, 2014 at 3:41pm
भाई जान, बहुत ही सुन्दर लिखा है अपने। ढेरों दाद आपको।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 27, 2014 at 12:05am

भाई मुकेश जी, सिर्फ़ लाता से काम नहीं चलेगा न .. कुलबुलाता और जलाता के कारण लाता किया जाय तो सिनाद दोष हावी हो जायेगा. वैसे आपने अपने ढंग से कहने की कोशिश की यह अच्छा लगा.

वैसे भाई अनुराग अनुभव बहुत अच्छी कोशिश करते हैं.

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on March 24, 2014 at 3:50pm

मुझसे नहीं पूछा  अiपने पर बता देता हूँ.. क़ाफियों की बुनियाद मतले मे छिपी होती है. इसके अनुसार आपको बाकी सारे क़ाफ़िए ऐसे लेने होंगे जिनके अंत में ....लाता हो..जैसे कुलबुलाता, जलाता.. आशा है आप समझ जाएँगे.

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on March 24, 2014 at 3:44pm

खूबसूरत ख़यालों पर दाद बनती ही है. लिखते रहिए

Comment by Anurag Anubhav on March 24, 2014 at 8:44am
केवल प्रसाद जी, गिरिराज भंडारी जी, धर्मेन्द्र सिंह जी काफिया में दोष की जो बात आपने कही मैं उस पर गौर कर रहा हूँ... मैं ग़ज़ल का बिलकुल नया विद्यार्थी हूँ अतः आप सभी से और अधिक स्पष्ट बात कहने की प्रार्थना है.. मैं समझ नहीं पा रहा काफिये का दोष...

मेरे मुताबिक अगर कुलबुलाता का प्रयोग गलत है तो क्या मुस्कुराता और बुलाता का प्रयोग भी गलत है???

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
12 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service