For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - छीन लेगा मेरा .गुमान भी क्या

छीन लेगा मेरा .गुमान भी क्या
इल्म लेगा ये इम्तेहान भी क्या

ख़ुद से कर देगा बदगुमान भी क्या 
कोई ठहरेगा मेह्रबान भी क्या

है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या
इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या

मेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है

काट ली जायेगी ज़बान भी क्या

धूप से लुट चुके मुसाफ़िर को

लूट लेंगे ये सायबान भी क्या

इस क़दर जीतने की बेचैनी
दाँव पर लग चुकी है जान भी क्या

अब के दावा जो है मुहब्बत का
झूठ ठहरेगा ये बयान भी क्या

मेरी नज़रें तो पर्वतों पर हैं
मुझको ललचायेंगी ढलान भी क्या

- वीनस केसरी
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 912

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by भुवन निस्तेज on March 25, 2014 at 11:50pm

मेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है

काट ली जायेगी ज़बान भी क्या

 

वाह! बेहतरीन ..........

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 5, 2014 at 9:42am

अब के दावा जो है मुहब्बत का
झूठ ठहरेगा ये बयान भी क्या...............बहुत खूब...................

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on February 2, 2014 at 6:53pm

अयहयहयहय..क्या बात कही है..गजल इसे कहते हैं...वाह..

Comment by Maheshwari Kaneri on January 31, 2014 at 10:25pm

आदरणीय वीनस जी शानदार ग़ज़ल कही है, बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Saarthi Baidyanath on January 30, 2014 at 11:53am

जिंदाबाद ग़ज़ल ! क्या शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय ...हर शेर , सवाल कर रहा है खुलुसियत के साथ ...माशा-अल्लाह ! मेरे पसंदीदा अशआर ..
छीन लेगा मेरा .गुमान भी क्या 
इल्म लेगा ये इम्तेहान भी क्या ..उम्दा आगाज़ 

है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या 
इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या

मेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है

काट ली जायेगी ज़बान भी क्या

धूप से लुट चुके मुसाफ़िर को

लूट लेंगे ये सायबान भी क्या ..... मजा आ गया ..धूप सा मजा आ गया सर्दियों में !..वाह साहब वाह 

Comment by Abhinav Arun on January 30, 2014 at 11:44am
मेरी नज़रें तो पर्वतों पर हैं
मुझको ललचायेंगी ढलान भी क्या....लाजवाब आपके मेयार की जिंदाबाद ग़ज़ल आदरणीय ...हौसला देते हैं आपके बेलाग बयान ,,साधुवाद !!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 30, 2014 at 11:33am

इस क़दर जीतने की बेचैनी
दाँव पर लग चुकी है जान भी क्या.. .  इस शेर को देर तक मथता रहा. ’बचे कुछ दिन’ वालों की याद कर मन वाकई सिहर गया.

आप तकाबुले रदीफ़ क्यों रहने देते हैं जी ?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 28, 2014 at 8:50pm

है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या 
इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या----वाह्ह्ह्हह वाह्ह्ह 

मेरी नज़रें तो पर्वतों पर हैं 
मुझको ललचायेंगी ढलान भी क्या ---जबरदस्त ,लाजबाब 

ग़ज़ल पर देर से पंहुची इसका खेद है ,पर मजा आ गया पढ़ के सभी शेर लाजबाब हैं पर ये दो तो बार बार पढने को मन करता है ,दिल बधाई कबूलें वीनस जी 

Comment by Tilak Raj Kapoor on January 27, 2014 at 10:58pm

वाह-वाह क्‍या बात है।

उम्‍दा ग़ज़ल। 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 26, 2014 at 1:27pm

है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या 
इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या

इस क़दर जीतने की बेचैनी 
दाँव पर लग चुकी है जान भी क्या 

मेरी नज़रें तो पर्वतों पर हैं 
मुझको ललचायेंगी ढलान भी क्या ..आदरणीय वीनस सर ..आपकी इस बेहतरीन ग़ज़ल को पढ़कर हमेशा की तरह ही नयी सोच मिली है उधृत किया शेर मुझे बिशेस रूप से पसंद आये ..आपको हार्दिक बधाई केसाथ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
17 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Jul 29
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service