For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

संकट मोचन ( लघु कथा ) अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

  •                                                     #   संकट  मोचन  #

 

आदि बेटे, मैं बहू को लेकर अस्पताल जा रही हूँ साथ में रंजना (बेटी) और अदिति ( पोती) भी। तुम गुरूजी को लेकर वहीं आओ।

 

आइये गुरूजी, प्रणाम। पोती के जन्म के समय आपने पूरा समय दिया था इस बार भी.......।

 

ठीक है मैया, मिठाई खाकर ही जाऊँगा। बहू को आशीर्वाद देते हुए - चिंता मत करो बेटी श्रीराधेकृष्ण की कृपा से इस बार भी सब कुछ सामान्य और सुखद होगा। हर समय बस उसे याद करते रहना।

सभी  वेटिंग कक्ष में खामोश  बैठे थे।  कुछ देर बाद नर्स खबर लाई, सुंदर स्वस्थ गोरी बिटिया हुई है, बधाई।

सुनते ही सबका चेहरा उतर गया, कुछ देर के लिए एक खामोशी सी छा गई।

 

गुरूजी ये क्या हुआ ? आपने ही कहा था इस बार पोते की दादी बनूँगी, इसलिए हमने ........।

 

मुझे मालूम था, आप सभी पर कन्या भ्रूण हत्या का पाप न लगे इसलिए मुझे झूठ का सहारा लेना पड़ा। मैया ईश्वर की कृपा को खुश होकर स्वीकार करो। इस शुभ निर्णय और शुभ अवसर पर भाई साहब की आत्मा भी हम सब को आशीर्वाद दे रही है। मेरी बात पर विश्वास करो और इस बंद लिफाफे को खोलकर पढ़ो। लिखा था.......

 

# इस बार भी कन्या होगी, हाँ तीसरी संतान के रूप में पुत्र का प्रबल योग है #     स्नेहाशीष .... गुरूजी ।

 

भीगी पलकों से गुरुजी को सादर प्रणाम करते हुए -- आप इस परिवार के ' संकट मोचन ' हैं गुरुजी, आपने हमे कन्या भ्रूण हत्या के जघन्य अपराध से बचा लिया॥

 

बेटे की ओर देखकर, आदि तुम अब तक यहीं हो, मालूम है न गुरूजी को रसगुल्ले बहुत पसंद हैं। 

 

*********************************

-अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

विवेकानंदनगर, धमतरी (छत्तीसगढ़)

 

( मौलिक एवं अप्रकाशित )

 

 

 

 

Views: 932

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 18, 2014 at 8:47am

आदरणीया पूनमजी,

लघु कथा आपको पसंद आई , हार्दिक धन्यवाद आभार ।  थोड़ी समझाइश के बाद गर्भपात पति पत्नी सास तीनों का सामूहिक फैसला हो जाता है  इसलिए यह कहना ज्यादा उचित है कि गुरुजी पूरे परिवार के संकट मोचन हुए। वैसे सच कहा जाय तो गुरुजी नवजात कन्या के संकट मोचन ज्यादा लगते  हैं । ... सादर  

Comment by Poonam Matia on January 18, 2014 at 2:17am

शिक्षा प्रद कथा ..... बधाई ...... मुझे लगा कि गुरु जी संकट मोचक बहू के लिए रहे न कि सास के लिए 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 17, 2014 at 4:18pm

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, मेरे द्वारा इंगित पंक्ति यदि आपको ज़रूरी लगती है तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है ? लेकिन मेरा मानना है कि जहाँ तक का टिकट लिया गया हो उसी स्टेशन पर उतर जाना ज़यादा बुद्धिमत्ता वाली बात होती है. उसेसे अगले स्टेशन तक गए तो जुर्माना हो सकता है !  खैर,  जैसा कि दूरदर्शन के एक विज्ञापन में बिना हेलमेट दोपहिया वाहन चलने वालों को चेताया गया है: "अब मर्ज़ी है आपकी - क्योंकि सर है आपका।"

सादर।            

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 17, 2014 at 3:44pm

आदरणीय योग्रराज प्रभाकर भाई, 

लघु कथा के संबंध में विस्तृत और महत्वपूर्ण जानकारी एवं सार्थक सुझाव के लिए हृदय से आभार, धन्यवाद।। 

लघु कथा  लिखते समय मैं यह देख  भी नहीं पाया कि मेरी लघु कथा  वास्तव में लघु  कथा +  हो चुकी  है। आपके सभी सुझावों को स्वीकार करता हूं और भविष्य के लिए नोट भी कर लिया ॥  , लेकिन अंतिम वाक्य .... 

 "बेटे की ओर देखकर, आदि तुम अब तक यहीं हो, मालूम है न गुरूजी को रसगुल्ले बहुत पसंद हैं। "  को इसलिए उचित

मान रहा हूँ कि मिठाई का ज़िक्र पहले आ चुका है और फिर किसी कथा का अंत भी तो रोचक ढंग से होना ही चाहिऎ ॥ 

........  सादर  

 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 16, 2014 at 8:17pm

इस रचना के माध्यम से आपने जो सन्देश देना चाहा है वह पूरी तरह से समझ में आता है, लघुकथा कहने का सम्भवत: आपका यह प्रथम प्रयास है, जिस कारण आप बधाई के पात्र हैं. हालाकि शिल्प कि दृष्टि से लघुकथा अभी भी बेहद ढीली है. लघुकथा की सुंदरता बरकरार रखने के लिए यह अति आवश्यक है उसमे अनावश्यक डिटेल देने से बचा जाए. एक भी फालतू शब्द रचना के चेहरे पर धब्बे की तरह उभर सकता है. उदहारण के लिए "रंजना (बेटी) और अदिति (पोती)" का ज़िक्र करने की क्या आवश्यकता थी? अगर पहली पंक्ति पूरी की पूरी हटा भी ली जाए तो लघुकथा पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है.    

अब उसके बाद देखें :

//मैया ईश्वर की कृपा को खुश होकर स्वीकार करो। इस शुभ निर्णय और शुभ अवसर पर भाई साहब की आत्मा भी हम सब को आशीर्वाद दे रही है//

यह सारी डिटेल भी गैर ज़रूरी है. 

इस पंक्ति को रखे बिना भी काम चल सकता था :

//बेटे की ओर देखकर, आदि तुम अब तक यहीं हो, मालूम है न गुरूजी को रसगुल्ले बहुत पसंद हैं। //

एक और तकनीकी खामी जो मुझे बहुत अखर रही है वह है गलत पंक्चुएशन; जहाँ भी संवाद हों उन पंक्तियों को इन्वर्टेड कोमाज़ के साथ प्रस्तुत किया जाता है ताकि पता चले कि यह वार्तालाप की पंक्तियाँ हैं. 

लघुकथा में शीर्षक केवल पेकिंग मेटेरिअल ही नहीं होता बल्कि पूरी रचना का एक अभिन्न अंग हुआ करता है, कई बार तो शीर्षक ही पूरी कहानी ब्यान कर देता है. उस दृष्टिकोण से इस लघुकथा का शीर्षक भी कुछ जमा नहीं. क्योंकि गुरु जी ने उनको किसी संकट से नहीं बल्कि हत्या करने से बचाया है.  

इन छोटी छोटी पर बेहद महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देंगे तो लघुकथा वास्तव में लघुकथा का रूप ले पाएगी, सादर.

 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 16, 2014 at 6:47pm

आदरणीय  सौरभ भाईजी, 

सार्थक सुझाव और लघु कथा को पसंद करने, आज के संदर्भ में  उसमें निहित संदेश की व्यापकता को समर्थन देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद और आभार ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 16, 2014 at 12:49pm

आदरणीय अखिलेशभाई, लघुकथा पर आप द्वारा हुई इस पहली कोशिश को मेरा अभिवादन. तथ्य और संदेश के हिसाब से एक सार्थक कोशिश हुई है.

आप इस मंच के सक्रियतम सदस्यों में से हैं. इस मंच पर साहित्य की तमाम विधाओं की सटीक और सार्थक रचनाएँ प्रस्तुत होती रहती हैं जिसका पता सुधी पाठकों तथा विज्ञ जनों की टिप्पणियों से स्वतः चल जाता है. आप उन श्रेष्ठ रचनओं को पढ़ने के क्रम में उनकी शैली को भी समझने की कोशिश करें. यह लेखकीय गुवत्ता को साधने का सबसे सहज तरीका है. 

सादर

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 16, 2014 at 11:16am

 अरुण   भाई , लघु कथा को  पसंद  करने के लिए  हार्दिक धन्यवाद, आभार ।

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 16, 2014 at 10:57am

आदरणीय इस लघुकथा के जरिये आपने बेहद सार्थक सन्देश दिया है इस हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें. बाकी मैंने स्वयं भी आदरणीया प्राची दीदी के कहे से सहमत हूँ.

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 16, 2014 at 10:55am

 जितेन्द्र  भाई , लघु कथा को  पसंद  करने के लिए  हार्दिक धन्यवाद, आभार ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service