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पतंगबाजी उर्फ तमन्नाओं की ऊँची उड़ान

पतंगबाजी उर्फ तमन्नाओं की ऊँची उड़ान

तमन्नाओं की ऊँची उड़ान

का आभास हुआ

जब कुछ बच्चों को

घर की मुंडेर

पर चढ़कर

पतंग उड़ाते देखा

अलग अलग रंगों की

छटा बिखेरती,

ऊँची और ऊँची

चढ़ रही थी

आसमान में

परिंदे उड़ते हैं जैसे ।

मेरी पतंग ही रानी है

शायद यही सोचकर

लड़ाया पेंच एक बच्चे ने

दूसरी पतंग धराशायी

हो गई

दूसरे बच्चे ने भी हार न मानी

फिर मांझा चढ़ाया

और दूसरे ही क्षण

उसकी शहजादी करने लगी

हवा से बातें

बदला पूरा लूंगा

यही सोच

उसने दी चुनौती

आसमान की रानी को

फिर पेंच भिड़ने लगे

कोई तैयार नहीं थे

हार मानने को ।

दावं पेंच चलते रहे

मैं सोच रही थी

खेल-खेल में

गली मोहेहल्ले में

कब सीख

जाते हैं बच्चे,  

जीवन के गुर

सफलता के राज

पैंतरे बाजी

यदि हार को स्वीकार करना

भी सीख लें यहीं,

तो,

तो जीवन आसान हो जाये ।

मांझा ही सिखाता है अकड़ पतगं को

जीत का सेहरा

सिर्फ मेरे ही सिर बंधे

मांझे को ढील दूं या खींचू,

बस मैं ही जीतूं

खेल में यह ठीक हो सकता है

क्योंकि खेल कुछ क्षणों का है

जीवन कुछ क्षणों का नहीं

थोड़ी लम्बी दौड़ है

इस लम्बी रेस का घोड़ा

बनने के लिए

सारी ताकत एक साथ

न लगा दें,

कुछ बचाकर रखें क्योंकि

जीत भी मिलेगी रास्ते में, तो

हार भी होगी

उस समय

ये ताकत,

ये चुनौती काम आयेगी ।

.

मोहिनी चोरडिया - चेन्नई

रचना मौलिक एवं अप्रकाशित है 

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Comment

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Comment by mohinichordia on January 12, 2014 at 2:29pm

 आप सभी का आभार .

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 9, 2014 at 12:05pm

आदरणीया मोहिनी जी पतंगबाजी खेल के जरिये जो सुन्दर सन्देश आपने दिया है वह सराहनीय है. जीवन का मूलमन्त्र पिरोया है आपने इस कविता में पढ़कर दिल खुश हो गया. आपको बहुत बहुत बधाई.

Comment by Meena Pathak on January 8, 2014 at 3:55pm

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. बधाई आप को | सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 8, 2014 at 12:38am

यदि हार को स्वीकार करना

भी सीख लें यहीं,

तो,

तो जीवन आसान हो जाये............मूलमंत्र सरल जीवन का, बधाई स्वीकारें आदरणीया मोहिनी जी

Comment by ajay sharma on January 7, 2014 at 11:04pm

मांझा ही सिखाता है अकड़ पतगं को

जीत का सेहरा

सिर्फ मेरे ही सिर बंधे

मांझे को ढील दूं या खींचू,

बस मैं ही जीतूं............kya baat hai ......bahut  bahut dhanyavad aisi rachna ko batne ke liye .......

Comment by AVINASH S BAGDE on January 7, 2014 at 10:53pm

खेल में यह ठीक हो सकता है

क्योंकि खेल कुछ क्षणों का है

जीवन कुछ क्षणों का नहीं

थोड़ी लम्बी दौड़ है...sahi darshan patang ke bahane 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on January 7, 2014 at 9:35pm

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति, सच ही कहा आपने खेलते खेलते ही बच्चे जीवन की प्रतिस्पर्धा के लिये भी तैयार हो जाते हैं, आदरणीय मोहिनी जी बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये

Comment by coontee mukerji on January 7, 2014 at 6:23pm

मांझा ही सिखाता है अकड़ पतगं को

जीत का सेहरा

सिर्फ मेरे ही सिर बंधे

मांझे को ढील दूं या खींचू,

बस मैं ही जीतूं

खेल में यह ठीक हो सकता है

क्योंकि खेल कुछ क्षणों का है

जीवन कुछ क्षणों का नहीं.......बहुत सुंदर. हार्दिक बधाई.

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