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नदी मर गयी,

बहुत तड़पने के बाद.

घाव मवादी था.

आती है अब महक.

अब शहर में गिद्ध नहीं आते.

कुत्ते लगाते हैं दौड़

उसकी मृत देह पर

फिर भाग खड़े होते हैं.

नदी जवान थी, खूबसूरत.

वह थी चिर यौवना.

भर देती थी जीवन से.

खेलती थी , करती थी अठखेलियाँ,

छूकर कभी इस किनारे को

कभी उस किनारे को.

उछालती जल, करती कल्लोल,

भिंगोती तट के पीपल को.

पुरबाई में पीपल का पेड़

झूम कर करता था अभिषेक.

करता अपने प्रिय पातों का अर्पण

प्रेम के भेट स्वरुप ..

दाह से पहले , ठंढे शीतल जल में

जब मृत शरीर को कराते  थे स्नान,

आत्मा तृप्त हो उठती थी .

चहचहा उठता था  घने पीपल पर

बैठा पक्षियों का समूह ,

मानो गवाही देता था

स्वर्ग की सीढ़ी के उतरने का.

जीवन तभी तक है

जब तक गति है.

नदी किनारे रहने वाला हंसों का जोड़ा

उड़ गया ....

नये  ठौर की तलाश में ..

वहां अब उग आयीं है

कुछ  झुग्गियां

जहाँ कुत्ते नहीं रहते

रहते है आदमी

जिन्हें मंजूर होता है

नरक ,

दो वक्त की रोटियों के बदले

शहर बड़ा हो गया

और नदी मर गयी ..

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by बृजेश नीरज on January 4, 2014 at 10:42pm

वाह! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 4, 2014 at 5:50pm

वाह नीरज भाई बेहद सुन्दर मार्मिक अभिव्यक्ति बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Neeraj Neer on January 4, 2014 at 11:05am

हार्दिक आभार आदरणीय जीतेंद्र गीत जी आपकी टिप्पणी से उत्साह बढ़ा है . 

Comment by Neeraj Neer on January 4, 2014 at 9:17am

कवि राज बुन्देली साहब प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार .

Comment by Neeraj Neer on January 4, 2014 at 9:16am

आपका आभार श्याम नारायण वर्मा जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 3, 2014 at 8:18pm

बहुत ही मार्मिक व् एक गहरे सच का सजीव चित्रण करती रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय नीरज जी

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 3, 2014 at 8:13pm

बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति,,,,,इस सुन्दर ,,,मार्मिक रचना हेतु बहुत बहुत बधाई आपको,,,,,,,,

Comment by Shyam Narain Verma on January 3, 2014 at 3:44pm
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ
Comment by Neeraj Neer on January 3, 2014 at 9:35am

आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब. 

Comment by Neeraj Neer on January 3, 2014 at 9:35am

बहुत बहुत आभार आदरणीया वंदना जी ..

कृपया ध्यान दे...

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