For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दो तरही गज़लें: राणा प्रताप सिंह

फाइलातुन फइलातुन फइलुन/फैलुन

 

मुझ पे इलज़ाम अगर लगता है

आपके ज़ेरेअसर लगता है

 

तुझमे खूबी न जिसे आये नज़र

वो बड़ा तंगनज़र लगता है

 

इक दिया हमने जलाया था कभी

अब वही शम्सो क़मर लगता है

 

ढूंढ आये हैं ख़ुशी हम घर घर

ये हमें आखिरी घर लगता है

 

यूँ तो है बात बड़ी छोटी पर

बात करते हुए डर लगता है

 

एक तेरे ही नहीं होने से

ये ज़हां ज़ेरोज़बर लगता है

 

रुख पे मुस्कान, जिगर में खंज़र

ये तो उनका ही हुनर लगता है

 

सरपरस्ती जो मिली ऐसा लगा     

धूप में जैसे शज़र लगता है

 

*************************************************************************************************

फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फा

 

ग़र्द को हमने जब अपना सामान किया

कुछ तो तेरा रस्ता ही आसान किया

 

तुमने जितने पत्थर फेंके थे घर में

सबने मेरे घर को आलीशान किया

 

उनके किस्से छेड़ के महफ़िल में समझो

आखिर तुमने अपना ही नुक्सान किया

 

कुछ बातों ने ला दी महफ़िल में रौनक 

लेकिन कुछ कुछ बातों ने हैरान किया

 

आखिर कब तक फ़र्ज़ निभाता रहता वो

रोज़ के फाकों ने उसको बेईमान किया

 

पूरा हिस्सा छीन लिया थोड़ा देकर

उस पर कहते हो हमने एहसान किया  

 

नींव का बस इक पत्थर तुमने खिसकाकर

क्या जानो क्या तुमने ऐ नादान किया

 

कितनी खुश थीं शह्र की जिंदादिल सड़कें  

कुछ तक़रीरों ने फिर शह्र वीरान किया

 

थोड़ी जान अभी तक उसमे बाकी थी 

आपकी तंजिया बातों ने बेजान किया 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 865

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on December 26, 2013 at 8:45pm

आदरणीया महिमा जी ग़ज़ल पसंद करने हेतु आभार|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on December 26, 2013 at 8:44pm

आदरणीय सुशील सरना जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए शुक्रिया|

Comment by कल्पना रामानी on December 26, 2013 at 8:02pm

 दोनों ही गज़ले शानदार ... हार्दिक बधाई आपको आदरणीय राणा प्रताप जी

सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 7:51pm

कितनी खुश थीं शह्र की जिंदादिल सड़कें  

कुछ तक़रीरों ने फिर शह्र वीरान किया..... ..वाह !! दोनों ही गज़ले शानदार ... हार्दिक बधाई आपको आदरणीय राणा प्रताप जी सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 26, 2013 at 4:09pm

जय हो..  फिर आता हूँ..

Comment by Sushil Sarna on December 26, 2013 at 12:20pm

nishabd....shaandaar aur damdaar sheron ka khoobsoorat nzraana....bahut khoobsoorat gazlain hain...haardik badhaaee


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on December 26, 2013 at 12:05pm

आदरणीय शिज्जू जी बहुत बहुत शुक्रिया|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 26, 2013 at 11:59am

वाह राणा साहब दोनों ही ग़ज़लें लाजवाब है बहुत बहुत बधाई आपको, हर शे'र पे बस वाह वाह है,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी ' मुसफ़िर' जी सादर अभिवादन अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीया रिचा यादव जी सादर अभिवादन बेहतरीन ग़ज़ल हुई है वाह्ह्हह्ह्ह्ह! शैर दर शैर दाद हाज़िर है मतला…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर अभिवादन उम्द: ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई शैर दर शैर स्वीकार करें!…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी ' मुसफ़िर' जी सादर अभिवादन!आपका बहुत- बहुत धन्यवाद आपने वक़्त…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर नमस्कार आपका बहुत धन्यवाद आपने समय दिया ग़ज़ल तक आए और मेरा हौसला…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी, सादर आभार।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी सहृदय शुक्रिया आदरणीय इस मंच के और अहम नियम से अवगत कराने के लिए"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service