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वादों की ..सडकों पे
कसमों के …गाँव हैं
प्रणय के ..पनघट पे
आँचल की ..छाँव है

…वादों की सडकों पे
…कसमों के गाँव हैं

प्रीतम की ……बातें हैं
धवल चांदनी …रातें हैं
सुधियों की .पगडंडी पे
अभिसार के ….पाँव हैं

…वादों की सडकों पे
…कसमों के गाँव हैं

शीत के …धुंधलके में
घूंघट की …..ओट में
प्रतिज्ञा की .देहरी पर
तड़पती एक .सांझ है

…वादों की सडकों पे
…कसमों के गाँव हैं

आराध्य की ..प्रतीक्षा में
प्रेम की ……..परीक्षा में
अधखुली …...पलकों में
मिलन के …..तूफ़ान हैं

…वादों की सडकों पे
…कसमों के गाँव हैं

नयनों के ….नीर में
अधरों की …पीर में
विरह की .समीर में
एक दर्द की .तान हैं

…वादों की सडकों पे
…कसमों के गाँव हैं

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 718

Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 20, 2013 at 5:25pm

aa.Saurabh Pandey jee haaaaaaaaaaaardik aabhaar aapne mere sanshy ka nidaan kya...ye gyaan mere liye amuly hai....aapka haardik aabhaar....kripya sneh bnaaye rakhain 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 19, 2013 at 9:35pm

आदरणीय आपने संभवतः इस प्रवहमान प्रतीत होती हुई रचना की पंक्तियों को स्वयं के अपनाये हुए सुर के हिसाब से साध लिया है. शब्दों के आवश्यक अक्षरों पर बलाघात या बल-लोप कर सुर तो कमोबेश साध लिया जा सकता है लेकिन रचना की मात्रिकता का निर्वहन नहीं हो पाता.
मेरी थोड़ी-बहुत समझ के अनुसार आपकी प्रस्तुत रचना की पंक्तियों की मात्राएँ ११ से लेकर १५ के बीच झूल रही हैं. पंक्तियों की मात्राएँ चाहें तो १२ या १४ की संख्या में रखें.

एक पंक्ति में कुल शब्दों की मात्राएँ मिल कर ही उस पंक्ति की मात्रा बनती है.

आप इस मंच पर बने रहें और प्रस्तुत हुई गीत-रचनाओं या नवगीत-रचनाओं को ध्यानपूर्वक देखतेरहें. बहुत कुछ स्पष्ट होगा.


सादर

Comment by Sushil Sarna on December 19, 2013 at 5:42pm

aadrneey Saurabh Pandey jee rachna par aapkee snehaasheesh ne rachna ko aik nayee oonchaaee prdaan kee hai...aapka tahe dil se shukriya....Sir aapka aabhaaree hoonga yadi aap rachna ke kisee aik bandh men smaadhan sahit maatrik vyavdaan btaa ka kasht krenge..puhah aapkee pratikriya avm sujhaav ka haardik aabhaar


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 19, 2013 at 12:45pm

बढिया !

भावाभिव्यक्ति को तनिक मात्रिकता का संबल दें. रचना प्राणवान हो उठेगी.. .   सादर 

Comment by Sushil Sarna on December 13, 2013 at 3:16pm

aa.Dr.Prachi Singh jee rachna par aapkee snehil pratikriya ka haardik aabhaar...aapka sujhaav mere liye anmol hai....haardik aabhaar


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 13, 2013 at 9:35am

सुन्दर अभिव्यक्ति है..

इसे गीत विधा पर साधने का प्रयत्न कीजिये ..बस मात्रिकता निर्वहन और तुकांतता पर थोडा ध्यान देने से यह एक सुन्दर गीत बन जाएगा.

सादर शुभकामनाएं 

Comment by Sushil Sarna on December 12, 2013 at 1:04pm

rachna pr apkee snehil pratikriya ka haardik aabhaar aa.JItender 'Geet' jee

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 12, 2013 at 8:53am

नयनों के ….नीर में
अधरों की …पीर में
विरह की .समीर में
एक दर्द की .तान हैं

आपकी रचना में सुंदर भाव बेहद सरलता लिए हुए है, बधाई स्वीकारे आदरणीय शुशील जी

Comment by Sushil Sarna on December 11, 2013 at 12:00pm

आदरणीय उमेश कटारा  जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया हेतु तहे दिल से शुक्रिया  

Comment by Sushil Sarna on December 11, 2013 at 11:59am

आदरणीय विजय निकोर जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया के  लिए आपका हार्दिक आभार 

कृपया ध्यान दे...

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