कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।
कि खुद डूबेगा मस्ती में वो तुमको भी डुबो देगा ।
दीवाने को नही मालुम तेरी मुस्कान का जादू ।
जो देखेगा छटा मुख की तो हो जाये न बेकाबू ।
फिर तो होके वो पागल तुम्हारे पीछे दौड़ेगा ।
कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।
ये करुणा से भरी आँखें पिलाती प्रेम का प्याला ।
के उस पर माधुरी तेरी घोल दे कौन सी हाला ।
गिरेगा लड़खड़ाकर जब तुम्हें बदनाम कर देगा ।
कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।
कि होकर प्रेम में पागल तुम्हारे दर पे बैठा है ।
न जाने आज ये क्या क्या इरादा करके बैठा है ।
कि पूरी जब गुज़ारिश हो तभी तेरा द्वार छोड़ेगा ।
कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।
फाड़ता खुद के ही कपड़े नाच दंगल ये करता है ।
कि इसको बाँध कर रखो बड़ी हलचल ये करता है ।
हो इसके सांचे भावों को यहाँ कोई न समझेगा ।
कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।
के इसकी ज़िन्दगी हो तुम तो जीने कि वज़ह दे दो ।
अपने दरबार में मोहन इसे थोड़ी जगह दे दो ।
तुम्हारे रूप के मोती वहाँ जी भर के लूटेगा ।
कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज "प्रेम"
Comment
आदरणीय प्रबन्धक जी
बिलकुल सही कहा आपने पर दीवानगी के भी चरण होते हैं इन्सान होश भी कई प्रकार से खोता है और दीवाने भी कई तरह के होते हैं मैंने सुना है राम कृष्ण परम हंस को दौरे पड़ते थे प्रेम में पूजा करने के वक्त अजीब अजीब हरकतें करने लगते थे कभी चुपचाप पूरा दिन यूँ ही बैठे रहते कभी पागलों कि तरह चिल्लाने लगते नाचने लगते लोग तो डर ही जाते थे एक बार तो निकाल ली काली माँ कि तलवार लोग घबरा कर भागे अब ये कैसी पूजा तलवार घुमाने लगे इधर उधर काली माँ से बोले आज या तो तुम या तो मैं दोनों में कोई एक ही बाकी रहेगा कहते हैं वो बेहोश होकर वहीँ गिर पड़े और तब उनको लगी पहली समाधि ।
आपकी टिप्पणी से बहुत बहुत अनुग्रहीत हूँ आपको सादर आभार ।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय गोपाल नारायण जी ।
भावपूर्ण इस रचना के लिए तहे सिल बधाई .सादर
पहले पद में 'मुस्काओ' खल रहा है ..मुस्कान शब्द तो है लेकिन मुस्काना या मुस्काओ पर संशय है... द्विपदीयों के लिए बधाई
आदरणीय नीरज भाई , सुन्दर द्वी पदियों के लिये आपको बधाई !!!!!
भाई नीरज प्रेम जी अच्छी द्विपदियाँ रची हैं मुझे लगता है आप इसे और बेहतर कर सकते थे कुछ पंक्तियाँ अधिक पसंद आईं कुछ कम खैर प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें.
//कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा //
गर होश ही रहा तो फिर दीवाना कैसा, और यदि दीवाना है तो पुनः होश क्या खोएगा |
खैर द्विपदियाँ अच्छी हुई हैं, बधाई प्रेषित है |
नीरज मिश्रा जी
आपकी भावपूर्ण कविता क लिए आपको साधुवाद i
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