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ग़ज़ल-- जख़्म किसने दिया, बता दूं क्या?

जख़्म किसने दिया बता दूँ क्या ?

दिल में चाकू कहो  घुमा दूं क्या ?

हुक़्म पे तेरे चलता हूं आका ,

ये वफ़ादारियाँ  निभा  दूँ क्या  ?

देखता हूं जिसे मैं सपनों में,

उसकी तस्वीर भी दिखा दूँ क्या  ?

आपकी राजनीति कहती है 

बस्तियाँ आपकी जला दूं क्या  ?

अब किसी काम ही नहीं आता,

आग संविधान में लगा दूँ क्या?

       sube singh sujan

यह रचना मौलिक तथा अप्रकाशित है।

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Comment

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Comment by बसंत नेमा on November 30, 2013 at 3:48pm

आ0   सुजान भाई जी .क्या कहने बहुत खूब 

अब किसी काम ही नहीं आता,

आग संविधान में लगा दूँ क्या?

शानदार प्रस्तुति के लिये ढेरो बधाईया ...................


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 30, 2013 at 3:19pm

आदरणीय सुजान भाई , लाजवाब गज़ल के लिये आपको दिली बधाई !!!!!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 30, 2013 at 9:54am

आपकी राजनीति कहती है 

बस्तियाँ आपकी जला दूं क्या  ?...........बहुत खूब,

शानदार गजल, बधाई स्वीकारें आदरणीय सूबे सिंह जी

Comment by वेदिका on November 30, 2013 at 7:54am

बहर लिख देने से हम जैसे नवसीखिये का भला हो जाता है!

रचना पर हार्दिक बधाई!

Comment by सूबे सिंह सुजान on November 29, 2013 at 7:52pm

dr. gopal narayan shirivastava ji....aapko parnam.....aapki bat se sahmat hun...lekin ghazal apne tevar men bat kar rhi hai>>

Comment by सूबे सिंह सुजान on November 29, 2013 at 7:51pm

Sushil Sarna  ji, behad shukriya  aapka vandan.....aabhar

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 29, 2013 at 7:48pm

सुजान जी

अरे नहीं ---- बंधुवर

चाकू सुरक्षित रखिये i बाद में काम  आएगा i

बस ग़ज़ल लिखते रहिये i शुभ कामनाये i

Comment by Sushil Sarna on November 29, 2013 at 7:17pm

ati sundr

Comment by सूबे सिंह सुजान on November 29, 2013 at 3:26pm

Shyam Narain Verma.. जी, आपका स्वागत है। आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई । हृदय से आभार। स्वीकारें

Comment by Shyam Narain Verma on November 29, 2013 at 11:58am
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………

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