जख़्म किसने दिया बता दूँ क्या ?
दिल में चाकू कहो घुमा दूं क्या ?
हुक़्म पे तेरे चलता हूं आका ,
ये वफ़ादारियाँ निभा दूँ क्या ?
देखता हूं जिसे मैं सपनों में,
उसकी तस्वीर भी दिखा दूँ क्या ?
आपकी राजनीति कहती है
बस्तियाँ आपकी जला दूं क्या ?
अब किसी काम ही नहीं आता,
आग संविधान में लगा दूँ क्या?
sube singh sujan
यह रचना मौलिक तथा अप्रकाशित है।
Comment
आ0 सुजान भाई जी .क्या कहने बहुत खूब
अब किसी काम ही नहीं आता,
आग संविधान में लगा दूँ क्या?
शानदार प्रस्तुति के लिये ढेरो बधाईया ...................
आदरणीय सुजान भाई , लाजवाब गज़ल के लिये आपको दिली बधाई !!!!!
आपकी राजनीति कहती है
बस्तियाँ आपकी जला दूं क्या ?...........बहुत खूब,
शानदार गजल, बधाई स्वीकारें आदरणीय सूबे सिंह जी
बहर लिख देने से हम जैसे नवसीखिये का भला हो जाता है!
रचना पर हार्दिक बधाई!
dr. gopal narayan shirivastava ji....aapko parnam.....aapki bat se sahmat hun...lekin ghazal apne tevar men bat kar rhi hai>>
Sushil Sarna ji, behad shukriya aapka vandan.....aabhar
सुजान जी
अरे नहीं ---- बंधुवर
चाकू सुरक्षित रखिये i बाद में काम आएगा i
बस ग़ज़ल लिखते रहिये i शुभ कामनाये i
ati sundr
Shyam Narain Verma.. जी, आपका स्वागत है। आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई । हृदय से आभार। स्वीकारें
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
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