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चंद मुक्तक

1. .....कुछ दीप जलते रह गए …


शायद हमारे प्यार के ....कुछ शब्द अधूरे रह गए

कुछ सकुचाये इकरार से ...कुछ नज़र से बह गए

मासूम लौ निर्बल हुई कम्बखत पवन के जोर से

कहने कहानी प्यार की ..कुछ दीप जलते रह गए

...............................................................................

2. ..........जिस्म तेरी यादों का ....

कफ़स बन के रह गया है .....ये जिस्म तेरी यादों का

सह रहा है अज़ाब कितना .अब ये दिल टूटे वादों का

अब तलब होती नहीं .पलकों को किसी भी ख्वाब की

बन गया है इक फसाना .अब प्यार हिज्र की रातों का


कफस =पिंजरा , अज़ाब=दुःख,तकलीफ , हिज्र =वियोग

.............................................. ...............................

3......बिन रूह के ……

पारसा है कौन यहाँ पर ...और गुनहगार कौन है

कौन है रहबर यहाँ पर और .......रहज़न कौन है

ख़ाक है संगीन हकीकत इंसान मुसाफिर है यहाँ

देखिये बिन रूह के .....जिस्म इंसान का मौन है

पारसा=पवित्र , रहबर=राह दिखाने वाला , रहज़न=लुटेरा या लूटने वाला


''मौलिक एवं अप्रकाशित ''

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Comment by Sushil Sarna on November 28, 2013 at 12:02pm

aa.Giriraj Bhandaree jee rachna par aapke sneh ka haardik aabhaar....aapka sujaav anmol hai...bhavishy men iska vishesh dhyaan rakhne ka prayatn karoonga...haardik aabhaar

Comment by ram shiromani pathak on November 28, 2013 at 12:45am

सुन्दर प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई आपको  ,,,,,सादर 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 27, 2013 at 9:41pm

सुशील भाई भावपूर्ण सुंदर मुक्तक की बधाई ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 27, 2013 at 9:23pm

आदरणीय सुशील भाई, मुक्तक के भाव बड़े अच्छे लगे !!! गेयता मे कमी लग रही है, अटकाव है !!! सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

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