भंवरों ने घेरा
पहुंचाया अवसादों की गर्तो में
संयोग बड़ ही सुखकर थे जिनके
उनके ही वियोग भुजंग बने,लगे डसने
कौन शक्ति? जो हर क्षण
अपनी ही ओर हमें है खींच रही
कल से खींचा,आज छुड़ाया
जो आयेगा वो भी छुटेगा
नश्वरता में इक दिन जीवन ही डूबेगा
क्षणभंगुरता से हो विकल हृदय
साश्वत खोज में जब भी तड़फा है
मोहवार्तों ने आलिंगन कर
जिज्ञासु तड़फ को मोड़ा है।
खार उदधि की हर विंदु में
रुचिकर रस का भास हुआ
भास भास ही सिद्ध हुआ
सत कुछ भी तो दिखा नहीं
हे अविनाशी!
अविनाशी कर के भान करा दे
मेरी तड़फ को
जिसकी चिंगारी का
कुछ बूंदों ने पल में नाश किया।
-
विन्दु
(मौलिक,अप्रकाशित)
Comment
बहुत ही सुन्दर! बहुत उच्च भावयुक्त रचना है ये! जिसे उतना ध्यानाकर्षण नहीं मिला जितना मिलना चाहिए था! आपको हार्दिक बधाई!
टाइपिंग की गलतियों पर ध्यान दें! इसने मज़ा काफी बिगाड़ा है!
सादर!
वाह ! प्रिय वंदना सुंदर भावो का सम्प्रेषण हुआ है कुछ टंकण त्रुटियाँ है उन्हे सही कर लीजिये । इस सुंदर रचना हेतु बधाई ।
आदरणीया विन्दु जी:
रचना के गहन भाव अच्छे लगे। खासकर निम्न....
//भंवरों ने घेरा
पहुंचाया अवसादों की गर्तो में//
//कौन शक्ति? जो हर क्षण
अपनी ही ओर हमें है खींच रही//
//क्षणभंगुरता से हो विकल हृदय
साश्वत खोज में जब भी तड़फा है//
बधाई।
सादर,
विजय निकोर
बहुत सुन्दर .... बधाई प्रिय वंदना
सुंदर प्रयास ..सादर बधाई के साथ
आप अभ्यास की प्रक्रिया में है i
ऐसे ही लिखती रहे
मेरी शुभकामनाये i
बहुत ही गहन व् सुंदर भाव से संजोयी पंक्तियाँ, बधाई स्वीकारें आदरणीया वंदना जी
आदरणीया वन्दना जी , !!!!!!! सुन्दर प्रस्तुति के लिये आपको बधाई !!!!! आदरणीया गीतिका जी की बातों को ध्यान ज़रूर दें !!!!!!!!
शानदार प्रस्तुति की है बधायी हो सर
संयोग बड़ ही सुखकर थे जिनके
उनके ही वियोग भुजंग बने,लगे डसने...... उक्त पंक्तियाँ बहुत प्रभावशाली है रचना मे!
रचना मे शब्दों की अशुद्धियाँ है! शीर्षक तड़फ/ तड़प...?
प्रयास पर बधाई !!
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