कालीदास
मौन शास्त्रार्थ में
खुले पंजे के जवाब में
मुक्का दिखाते हैं
विद्वान अर्थ लगाते हैं
उन्हें ख़ुद पता नहीं
वो शास्त्रार्थ जीत जाते हैं !!
भगवान कृष्ण !
एक अर्जुन को
एक बार गीता सुनाते हैं
विद्वान
सौ सौ टीकायें लिख डालते हैं
अर्थ भिन्नता के साथ
सभी के अपने अपने दावे
सभी के अपने तर्क !!!
तब !!
मेरा मन प्रश्न करता है
क्या कृष्ण हुये बिना
अर्जुन हुये बिना
गीता समझी जा सकती है ?
क्या रचनाकार के अन्दर समाये बिना
या वही हुये बिना
किसी की रचना समझी जा सकती है ?
अगर हाँ ,तो ज़रूर कृष्ण ने ऐसी कोई बात कही है
जिसके हज़ारों अर्थ हों !!!!
फिर मै जो अर्थ लगाऊँ वो भी सही !
अगर नहीं , तो
क्यों न हम दावे कृष्ण बनने के बाद ही करें
और तब तक हो
केवल प्रयास ,
कृष्ण हो जाने का !!!!!!
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीया मीना जी , !!!!! रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!!!!
आदरणीया गीतिका जी, !!!! रचना का अनुमोदन कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका आभारी हूँ !!!
आदरणीय अग्रज गोपाल जी , आपके द्वारा मेरी बातों को अनुमोदन प्राप्त होना , बहुत खुशी की बात है मेरे लिये !!!! आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!
आदरणीय सन्दीप भाई , रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ !!!!!
और तब तक हो
केवल प्रयास,
कृष्ण हो जाने का !! नमन
विद्वान
सौ सौ टीकायें लिख डालते हैं
अर्थ भिन्नता के साथ
सभी के अपने अपने दावे
सभी के अपने तर्क !!!
लेकिन मूल से सभी इधर उधर या कुछ समानता लिए हुये होते है, और केवल अपनी विद्वत्ता प्रदर्शन के लिए, न के धर्म के पालन के लिए! उत्तम विचार किया आपने! बधाई लीजिये!!
मित्र गिरिराज जी
आपने बहुत सुन्दर प्रश्न उठाया है I
सच्चाई यह है कि हम सब अंधे है I
टटोल-टटोल कर अनुमान और कल्पना के सहारे निष्कर्ष निकालते है I
जय शंकर प्रसाद जी के शब्दों में ----
पागल रे ! तू मिलता है कब
तुझको तो देते ही है सब
यह विश्व लिए है ऋण उधार
विद्वान ही यह जानते है कि वह कितना कम जानते है i
क्या बात है
ऐसा प्रयास करना
अपने बस का है क्या ?????
साधुवाद सर जी
जय हो
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