For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गूँजी फिजाएं ......................डॉ० प्राची

वर्जना के टूटते

प्रतिबन्ध नें- 

उन्मुक्त, भावों को किया जब, 

खिल उठीं

अस्तित्व की कलियाँ 

सुरभि चहुँ ओर फ़ैली, 

मन विहँस गाने लगा मल्हार...

...फिर गूँजी फिजाएं 

जब सरकता चाँद पूनम

छत चढ़ा,

तारों नें झिलमिल 

दीप उत्सव में जलाए, 

प्राण प्रिय नें

हाथ थामा, 

सिहरते पल नें किया शृंगार...

..फिर गूँजी फिजाएं 

बधिर साँकल,

बंद खिड़की

ख्वाब की - घुटती सिसकती, 

ले कहीं से

अंजुरी भर 

हौसले की रश्मियों को,

जब खुली, पा नभ तलक विस्तार...

..फिर गूँजी फिजाएं 

Views: 1364

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 22, 2013 at 12:18pm

भाव  जब उन्मुक्त 

पल रच रहे श्रृंगार 

हौसले की रश्मि का

आकाश तक विस्तार

तो  गूंजेंगी  फिजाए               

आदरणीया प्राची जी आपकी कविता पर मेरे भाव सुमन ------

बड़ी हे प्रेरक और मोहक है आपकी कल्पना  i शुभ कामनाये i

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 22, 2013 at 10:36am

ऋषि मुनियों का नाम आने पर हर कहीं  ' शृंगी ' ऋषि ही लिखा गया है अतः ' शृंगार ' लिखना ही उचित है। इस  सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीया प्राचीजी ॥

Comment by vandana on November 22, 2013 at 7:51am

ले कहीं से

अंजुरी भर 

हौसले की रश्मियों को,

जब खुली, पा नभ तलक विस्तार...

बहुत सुन्दर भावों से सजी रचना आदरणीया प्राची जी बहुत बहुत बधाई 

Comment by वेदिका on November 21, 2013 at 11:22pm

गीत बहुत मनमोहक है| और इसके स्थायी ने तो मुझे सम्मोहित ही कर दिया है, बहुत प्यारा और सकारात्मकता से भरपूर "फिर गूंजी फिज़ाएँ" इसके चयन के लिए आपको साधुवाद देना चाहती हूँ|

और //शुद्ध अक्षर शृंगार होता है न कि श्रृंगार// .... जानकारी के लिए आभार! 

शत शत शुभकामनायें आ0 प्राची दी!

   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 21, 2013 at 9:56pm

//जब सरकता चाँद पूनम

छत चढ़ा,

तारों नें झिलमिल 

दीप उत्सव में जलाए, 

प्राण प्रिय नें

हाथ थामा, 

सिहरते पल नें किया शृंगार...

..फिर गूँजी फिजाएं // बहुत बढ़िया,

आदरणीया डॉ प्राची जी इस खूबसूरत रचना के लिये बधाई स्वीकार करें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 21, 2013 at 9:38pm

आदरणीय डॉ ० अनुराग सैनी जी 

रचना पर आपके अनुमोदन के लिए आभार 

काश आप इस रचना पर बन रहे संवाद को भी नीचे की टिप्पणियों में पढ़ते ...तो शृंगार शब्द के स्थान पर श्रृंगार के आग्रही न रहते 

सादर.

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 21, 2013 at 9:36pm

शब्द संयोजन , भाव और अभ्व्यक्ति सटीक और उम्दा है 

इंसान पुरे भाव में बहता सा जाता है इस रचना में 

 शृंगार को अगर श्रृंगार पढ़ा जाए तो बहुत ही उम्दा रचना है

आपको तहे दिल से मुबारकबाद  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 21, 2013 at 9:30pm

हार्दिक आभार आ० श्याम नारायण वर्मा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 21, 2013 at 9:03pm

आदरणीय अजीत शर्मा जी 

प्रस्तुत गीत की साहित्यिक भाषा एवं शैली पर आपसे मुखर अनुमोदन प्राप्त होना प्रशस्तिपत्र के ही सामान है, इस बहुमूल्य प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद 

आदरणीय,

शृंगार और श्रृंगार दोनों ही quillpad पर आसानी से टाईप हो जाते हैं..पर यहाँ वर्तनी अनुरूप शुद्ध रूप 'शृंगार' को ही लिखा गया है...

इस शब्द विशेष पर मंचपर कई बार सार्थक गंभीर और अत्यंत विषद चर्चाएँ हो चुकी हैं, वर्ण-स्वर संयोजन के नियमों का अवलोकन व तर्क सम्मत विवेचन करने पर, सार स्वरुप निम्नवत statement मंच मान्य / सर्व मान्य है...

//तालव्य  में व्यञ्जन  संयुक्त होता है तो श्र होता है. उससे  संयुक्त होता है तो शृ होता है. शृंगार का शृं तालव्य  में  और मात्रा अं के संयुक्त होने से बनता है. शुद्ध अक्षर शृंगार होता है न कि श्रृंगार........( आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी के शब्दों में) //

इस शब्द विशेष पर आपसे जानना रुचिकर होगा.

खैर ...आदरणीय आप अवश्य ही आश्वस्त हो लें कि इस अभिव्यक्ति में कामचलाऊ वर्तनी का प्रयोग कदापि नहीं किया गया है.

सादर.

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on November 21, 2013 at 7:55pm

संस्कृतनिष्ठता के समीपस्थ शब्द कभी-कभी अत्यन्त आनन्द के स्रोत होते हैं. कारण, अब ये शब्द दुर्लभ प्रजातियों में सम्मिलित होने जा रहे हैं,  ऐसा,  पता नहीं क्यों, मुझे प्रतीत होता है..... साहित्यिक भाषा एवं शैली की प्रशंसा के लिए शब्द नहीं मिल रहे हैं ..... अत्यन्त शानदार हिन्दी गीत !!!

पुनश्च,  Quillpad  शायद  'शृंगार'  ही लिख ही लिख पाता है.  अधिक से अधिक ‘श्रंगार ‘ लिख  देगा .... सतोषजनक यह भी नहीं है .... वैसे विशुद्ध हिन्दी, विशेषतः संस्कृतनिष्ठ शब्दों की मनचाही वर्तनी को Quillpad से निकालना बहुत दुरूह,  कभी-कभी तो खिसियाहट भरा कार्य लगने लगता है .... कामचलाऊ वर्तनी का प्रयोग अरुचिकर लगता है ..... अस्तु,  बधाई आ०

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
13 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service