For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सृजन-सृजन (अतुकांत) ...............डॉ० प्राची

शब्द तरंगहीन 
      गहनतम 
      सान्द्रतम 
      और 
      निर्बाध उन्मुक्तता में अवस्थित
      विलगता-विलयन के 
      सुलझे तारों पर स्पंदित
मन का अंतर्गुन्जन... / मदमस्त
जब चुन बैठे कोई स्वप्न 
और 
नियति 
चरितार्थ करने को हो बाध्य !
तब,
विधि विधान विधाता 
विलयित हो
उन्मुक्त मनःस्पंदन में 
खेलते है  ..सृजन-सृजन !

(मौलिक और अप्रकाशित) 

Views: 1017

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 2, 2013 at 9:04pm

अभिब्यक्ति के भाव व शब्द चयन पर आपकी उदात्त सराहना के लिए आभारी हूँ आदरणीया कुंती मुखर्जी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 2, 2013 at 9:03pm

अभिव्यक्ति पर आपकी उपस्थिति के लिए धन्यवाद प्रिय राम शिरोमणि जी 

Comment by coontee mukerji on November 29, 2013 at 4:32pm

प्राची जी आपकी अतुकांत रचना में ''सृजन-सृजन'' बहुत अच्छा लगा. सारे भावों का निचोड़ आपने इन दो शब्दों में दे दिये है.आप की शब्द रचना कौशल अद्भूत है.साधुवाद.

Comment by ram shiromani pathak on November 29, 2013 at 12:04am

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया प्राची जी   ……।हर्दिक बधाई आपको 

Comment by बृजेश नीरज on November 28, 2013 at 9:35pm

आदरणीया प्राची जी, आपने मेरे कहे को मान दिया, इसके लिए आपका आभार!

मेरी टिप्पणी रचना विशेष पर जरूर है परन्तु रचना विशेष के लिए नहीं है. इस रचना के शब्द और भाव समझ ही गया. मैंने टिप्पणी में रचना की प्रशंसा महज औपचारिकता के लिए नहीं की थी.

ये एक प्रश्न है मेरे मन में, आप के विचार इस बिंदु पर जानना चाहता था. आपकी बात सही और उचित है लेकिन इतना जरूर कहना चाहूँगा कि हम अपना कम्फर्ट जोन खुद चुनते हैं.

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 28, 2013 at 9:05pm

रचना आपको पसंद आयी ..

आपका हार्दिक आभार आ० अन्नपूर्णा बाजपेयी जी 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 28, 2013 at 9:04pm

आ० संदीप जी 

रचना के भाव व शब्दों का निनाद आपको पसंद आया.. यह जानना हर्षित करता है

सादर धन्यवाद  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 28, 2013 at 8:52pm

आ० बृजेश जी,

रचना की गहनता पर आपका अनुमोदन हर्षित करता है... हार्दिक आभार!

//एक प्रश्न बार-बार उठता है- क्या शब्दों की क्लिष्टता आवश्यक है?//..............बृजेश जी शब्द हर रचनाकार अपनी सहज कम्फर्ट ज़ोन के अनुरूप ही लेता है, जो शब्द एक पाठक के लिए बिलकुल सहज होते हैं वही दूसरे के लिए मुश्किल हो सकते हैं.

इस अभिव्यक्ति का कौन सा शब्द इतना क्लिष्ट है...जिसे सरल रूप में लेने की आवश्यकता है यदि स्पष्ट कह पायेंगे तो मुझ अकिंचन पर उपकार होगा...

या फिर  शायद यह हो की अर्थ की गहनता के कारण शब्द प्रति शब्द कथ्य के तारों को पकड़े पकड़े चल पाने में पाठक अर्थ का सिरा छोड़ दे रहे हों? काफी लम्बे वाक्य यदि हों तो ऐसा सामान्यतः हो जाता है.

आपकी पाठकीय प्रतिक्रया का सादर सहर्ष स्वागत है..:)) 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 28, 2013 at 8:28pm

आ० राजेश जी 

मुझे वास्तव में बिलकुल महसूस नहीं हुआ की इस अभिव्यक्ति विशेष में कोइ ऐसा कठिन शब्द प्रयुक्त किया गया हो, जिसका अर्थ कोई पाठक सहजता से न समझ सके...

तथ्य गूढ़ ज़रूर है, लेकिन इतनी सहजता या सरलता से ऐसा गहन भाव कभी व्यक्त हुआ हो इस पर मुझे संशय है..!

//शब्‍दों का अनुरणन कभी-कभी शोर भी पैदा करता है//..............ये शोर  किन शब्दों से हो रहा है वो कठिन शब्द ज़रूर सांझा कीजिये ताकि अर्थ स्पष्ट किया जा सके..

आपकी बेबाक प्रतिक्रया का स्वागत है.

Comment by annapurna bajpai on November 28, 2013 at 8:22pm

नियति 
चरितार्थ करने को हो बाध्य !
तब,
विधि विधान विधाता 
विलयित हो
उन्मुक्त मनःस्पंदन में 
खेलते है  ..सृजन-सृजन !................ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी । 

 बहुत सुंदर भावों के साथ , सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ0 प्राची जी , बधाई आपको इस अप्रतिम रचना के लिए । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
9 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
yesterday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post ममता का मर्म
"बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है,…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"अच्छे दोहे हुए हैं, आदरणीय सरना साहब, बधाई ! किन्तु दोहा-छंद मात्र कलों ( त्रिकल द्विकल आदि का…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service