For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

देश काल निमित्त की सीमाओं में जकड़े तुम 

और तुम्हारे भीतर एक चिरमुक्त 'तुम'

-जिसे पहचानते हो तुम !

उस 'तुम' नें जीना चाहा है सदा 

एक अभिन्न को-

खामोश मन मंथन की गहराइयों में 

चिंतन की सर्वोच्च ऊचाइंयों में 

पराचेतन की दिव्यता में.....

पूर्णत्वाकांक्षी तुम के आवरण में आबद्ध 'तुम'

क्या पहचान भी पाओगे 

अभिन्न उन्मुक्त अव्यक्त को-

एक सदेह व्यक्त प्रारूप में......?

(मौलिक और अप्रकाशित) 

Views: 1227

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on December 3, 2013 at 7:33pm

सघन भावों की अति सुंदर अभव्यक्ति हुई है, आदरणीया प्राची जी, हार्दिक बधाई आपको

Comment by बृजेश नीरज on November 25, 2013 at 7:59am

यह प्रश्न शाश्वत है! आकांक्षाओं के मोह में जकड़े हम इस प्रश्न के उत्तर की तलाश में ही जीवन को जीते चले जाते हैं. 'मैं' या 'तुम' की तलाश पूरी नहीं हो पाती.

बहुत ही सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Arun Sri on November 20, 2013 at 1:19pm

व्यक्त और अव्यक्त का यही अंतर्द्वंद तो मानव जीवन का मूल व्यव्हार है ! परमानन्द कि प्राप्ति है इसे समझ पाना , इस व्यूह से निकल पाना ! कविताओं में "बुद्ध" की तरह कविता ! गहन और सूक्ष्म ! सुन्दर !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 20, 2013 at 12:40pm

मैं, तुम और हम प्रत्येक मानव के अंदर है, किसे कब जागृत किया जाय यह व्यक्ति पर निर्भर करता है, साथ ही यही कारक व्यक्ति की पहचान भी बनते हैं, एक अच्छी कविता पर बधाई आदरणीया डॉ प्राची जी |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 16, 2013 at 9:36pm
रचना अनुमोदित करने के लिए धन्यवाद आ० प्रदीप शुक्ला जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 16, 2013 at 9:35pm

रचना आपको सार्थक लगी यह मेरे लिए संतोष की बात है आ० वन्दना जी 

सादर आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 16, 2013 at 9:33pm

रचना की अंतर्धारा भाव दशा व मर्म को स्पर्श करने के लिए हार्दिक आभार आ० शिज्जू जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 16, 2013 at 9:32pm

अभिव्यक्ति सन्निहित कथ्य की सार्थकता अनुमोदित करने के लिए हार्दिक आभार आ० संदीप पटेल जी 

Comment by Abhinav Arun on November 15, 2013 at 9:40am

संशय , संदेह , शक्तियों- आसक्तियों की अबूझ वीथिकाओं में प्रवाहित जल सा ही तो है जीवन ...वश कहाँ ..विश्राम कहाँ ...पल भर ठहरे तो जाने उस ''तुम ''को ...गूढ़ रहस्य भाव को चेतना के स्तर पर उभरने और जागृत करने में सफल काव्य कृति के लिए बहुत बधाई आ. डॉ साहिबा !!

Comment by Sushil.Joshi on November 14, 2013 at 4:55am

पूर्णत्वाकांक्षी तुम के आवरण में आबद्ध 'तुम'

क्या पहचान भी पाओगे 

अभिन्न उन्मुक्त अव्यक्त को-

एक सदेह व्यक्त प्रारूप में....... सचमुच यह प्रश्न विचारणीय है...... क्या सचमुच हम स्वयं को पहचान पाए हैं..... बहुत बहुत बधाई आ0 डॉ. प्राची जी इस लघु किंतु गहन प्रस्तुति हेतु....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service