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कभी फूलों मे कलियों में, कभी झरनों के पानी में
मुझे महसूस तू होता, हवाओं की रवानी में
कभी बेकस की आहों में ,निगाहे बेबसी में भी
कभी खोजा किया तुझको, किसी गमगीं कहानी में
मुदावा मेरी लग्ज़िश का, मेरी कोशिश का तू हासिल
मेरी मुस्कान में तू है, तू है दर्दे निहानी में
खयालों मे तेरा कब्ज़ा, मेरी अनुभूति में तारी
मेरी हर गुफ़्तगू तुझसे, तू मेरी बेज़ुबानी में
तू पोशीदा, अयाँ भी तू ,दुआ भी तू, करम भी तू
तू रूहानी अक़ीदत है ,मेरी इस ज़िन्दगानी में
तू हाज़िर है, जो हर लम्हा खुली या बन्द आँखें हो
मै खुशियाँ ढूँढ लूंगा अब, बलाये आसमानी में
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मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
इस खूबसूरत आध्यात्मिक गज़ल के लिए हार्दिक बधाई, भाई गिरिराज जी।
आदरणीय गिरिराज सर बहुत खूबसूरत ग़ज़ल !!!!
आदरणीय बडे भाई अखिलेश जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका अभारी हूँ !!!!!
उच्च भाव लिए आध्यात्मिक गज़ल की बधाई छोटे भाई। कुछ शब्दों के मायने देना भूल गये।
आदरणीय विशाल भाई , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!
आदरणीय राम अवध भाई , आपकी सराहना से निश्चित मेरा उत्साह दोबारा हुआ है !!!!! आदरणीय आपका हारदिक आभार !!!!!
// कभी फूलों मे कलियों में, कभी झरनों के पानी में
मुझे महसूस तू होता, हवाओं की रवानी में ///
वाह वाह सर जी..... मतले से लेकर मकते तक गजब की रवानी है...... वाकई एक खूबसूरत गजल हुई है सर जी !!!!
तू हाज़िर है, जो हर लम्हा खुली या बन्द आँखें हो
मै खुशियाँ ढूँढ लूंगा अब, बलाये आसमानी में
पॉज़िटिव सोच के उम्दा शेर के लिए बधाई आदरणीय भंडारी भाई
आदरणीय डा. आशुतोष भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ !!!!!!
आदरणीय बैद्य नाथ भाई , आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!!!!!!!!
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