For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : सच वो थोड़ा सा कहता है

बह्र : मुस्तफ्फैलुन मुस्तफ्फैलुन

----

सच वो थोड़ा सा कहता है

बाकी सब अच्छा कहता है

 

दंगे ऐसे करवाता वो

काशी को मक्का कहता है

 

दौरे में जलते घर देखे

दफ़्तर में हुक्का कहता है

 

कर्मों को माया कहता वो

विधियों को पूजा कहता है

 

जबसे खून चखा है उसने

इंसाँ को मुर्गा कहता है

 

खेल रहा वो कीचड़ कीचड़

उसको ही चर्चा कहता है

 

चलता है जो खुद सर के बल

वो सबको उल्टा कहता है

 

तेरा क्या होगा रे ‘सज्जन’

अंधे को अंधा कहता है

--------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 526

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on October 7, 2013 at 1:36am

वाह! क्या कहिए गज़ल की शान को, बहुत खूबसूरत!! 

खेल रहा वो कीचड़ कीचड़

उसको ही चर्चा कहता है,, क्या बात कही है!

Comment by विजय मिश्र on October 4, 2013 at 1:04pm
"तेरा क्या होगा रे ‘सज्जन’
अंधे को अंधा कहता है||" -- बात एकदम से मन को छू लेती है,सहज ही एक निर्दोष भाव को जन्म देती है ,यह काल की करालता है कि सच से लोगों को गुरेज है ,सच चुभता है ' निर्विवाद सुंदर रचना . बधाई हो धर्मेन्द्रजी .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 4, 2013 at 12:00pm

खेल रहा वो कीचड़ कीचड़

उसको ही चर्चा कहता है............वाह! क्या बात है 

 

चलता है जो खुद सर के बल

वो सबको उल्टा कहता है.........बहुत खूब, सशक्त सार्थक शेर

बहुत बढ़िया गजल, बहुत बहुत बधाई आदरणीय धर्मेन्द्र जी

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on October 4, 2013 at 9:07am

जबसे खून चखा है उसने

इंसाँ को मुर्गा कहता है... वाह!

बड़ी शानदार गजल आदरणीय धर्मेन्द्र भाई जी... सादर बधाई स्वीकारें....

Comment by annapurna bajpai on October 3, 2013 at 10:33pm

आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत ही बढ़िया गजल हुई है सभी शेर बहुत ही उम्दा है बहुत बधाई । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2013 at 9:12pm

दौरे में जलते घर देखे

दफ़्तर में हुक्का कहता है

 

कर्मों को माया कहता वो

विधियों को पूजा कहता है

 

जबसे खून चखा है उसने

इंसाँ को मुर्गा कहता है

 

खेल रहा वो कीचड़ कीचड़

उसको ही चर्चा कहता है

 

चलता है जो खुद सर के बल

वो सबको उल्टा कहता है

वाह ज़नाब ! ..  बधाई !!

Comment by Abhinav Arun on October 3, 2013 at 8:40pm

जबसे खून चखा है उसने

इंसाँ को मुर्गा कहता है

 

खेल रहा वो कीचड़ कीचड़

उसको ही चर्चा कहता है....  अशार सादगी और साहस  भरे हैं.. शानदार ..आपके तरकश को बधाई आदरणीय :-)

Comment by Saarthi Baidyanath on October 3, 2013 at 8:36pm

जबसे खून चखा है उसने

इंसाँ को मुर्गा कहता है......उम्दा :)

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 3, 2013 at 8:26pm

चलता है जो खुद सर के बल

वो सबको उल्टा कहता है |

वाह, बढ़िया ग़ज़ल धर्मेन्द्र जी  !

  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 3, 2013 at 7:01pm

हर एक शेर लाजवाब है आ० धर्मेन्द्र जी 

हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल पर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service