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चिड़िया के दो बच्चों को

पंजों में दबाकर उड़ गया है एक बाज

 

उबलने लगी हैं सड़कें

वातानुकूलित बहुमंजिली इमारतें सो रही हैं

 

छोटी छोटी अधबनी इमारतें

गरीबी रेखा को मिटाने का स्वप्न देख रही हैं

पच्चीस मंजिल की एक अधबनी इमारत हँस रही है

 

कीचड़ भरी सड़क पर

कभी साइकिल हाथी को ओवरटेक करती है

कभी हाथी साइकिल को

 

साइकिल के टायर पर खून का निशान है

जनता और प्रशासन ये मानने को तैयार नहीं हैं

कि साइकिल के नीचे दब कर कोई मर सकता है

 

अपने ही खून में लथपथ एक कटा हुआ पंजा

और मासूमों के खूब से सना एक कमल

दोनों कीचड़ में पड़े-पड़े, आहिस्ता-आहिस्ता सड़ रहे हैं

 

कच्ची सड़क पर एक काली कार

सौ किलोमीटर प्रति घंटा की गति से भाग रही है

धूल ने छुपा रखी हैं उसकी नंबर प्लेटें

 

कंक्रीट की क्यारियाँ सींचने के लिए

उबलती हुई सड़क पर

ठंढे पानी से भरा हुआ टैंकर खींचते हुये

डगमगाता चला जा रहा है एक बूढ़ा ट्रैक्टर

 

शीशे की वातानुकूलित इमारत में

सबसे ऊपरी मंजिल पर बैठा महाप्रबंधक

अर्द्धपारदर्शी पर्दे के पीछे से झाँक रहा है

उसे सफेद चींटी जैसे नजर आ रहे हैं

सर पर कफ़न बाँधे

सड़क पर चलते दो इंसान

 

हरे रंग की टोपी और टी-शर्ट पहने

स्वच्छ पारदर्शक पानी से भरी

एक लीटर और आधा लीटर की

दो खूबसूरत पानी की बोतलें

महाप्रबंधक की मेज पर बैठी हैं

उनकी टी शर्ट पर लिखा है

पूरी तरह शुद्ध, बोतल बंद पीने का पानी

अतिरिक्त खनिजों के साथ

 

उनकी टी शर्ट पर पीछे की तरफ कुछ बेहूदे वाक्य लिखे हैं

जैसे

सूर्य के प्रकाश से दूर ठंढे स्थान पर रखें

छः महीने के भीतर ही प्रयोग में लायें

प्रयोग के बाद बोतल को कुचल दें

 

केंद्र में बैठा सूरज चुपचाप सब देख रहा है

पर सूरज या तो प्रलय कर सकता है

या कुछ नहीं कर सकता

 

सूरज छिपने का इंतजार कर रही है

रंग बिरंगी ठंढी रोशनी

------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 11:03pm

अरुन शर्मा 'अनन्त' जी, यह कविता नोएडा की एक बहुमंजिली इमारत में बैठकर नोएडा पर ही लिखी गई। नोएडा तेजी से विकसित होते शहरों का प्रतिनिधि है और ये कविता उन्हीं शहरों की स्थिति बयान करती है।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 10:58pm

आदरणीय सौरभ जी, इस स्नेह के लिए क्या कहूँ, आभारी शब्द काफ़ी नहीं है। तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ और आगे भी इसी तरह के स्नेह की कामना करता हूँ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 10:54pm

बहुत बहुत धन्यवाद Sushil.Joshi जी। टंकण त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाने के लिए आपका आभारी हूँ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 10:53pm

बहुत बहुत धन्यवाद  Dr.Prachi Singh जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 10:53pm

बहुत बहुत धन्यवाद अरुन शर्मा 'अनन्त' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 10:50pm

बहुत बहुत धन्यवाद Dr Ashutosh Mishra जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 10:50pm

बहुत बहुत धन्यवाद Ajeet Sharma 'Aakash' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 10:49pm

बहुत बहुत धन्यवाद ajay sharma जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 10:48pm

बहुत बहुत शुक्रिया  Abhinav Arun जी, स्नेह बना रहे

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 10:46pm

बहुत बहुत शुक्रिया गिरिराज भंडारी जी। स्नेह बना रहे

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