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जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी । गजल (प्रथम प्रयास )

मुतदारिक मुसद्दस सालिम

212 /212/ 212

जिन्दगी  जिन्दगी  जिन्दगी ।

बन्दगी तिश्नगी आशिकी ॥

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।

खेल भी जीत भी हार भी ॥

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।

इश्क भी  अश्क भी मौत भी ॥

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी । 

देश भी धर्म भी कर्म भी  ।।

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी । 

शब्द भी नज़्म भी नग़्म भी ।।

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।   

तख्त भी अर्श भी गर्द भी ॥

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी । 

फर्ज भी कर्ज भी दर्द भी ॥

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी।

मीत भी खैर भी बैर भी  ॥

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।

भूख भी प्यास भी नीँद भी ॥

जिन्दगी जिन्दगी जिन्दगी ।

शूल सी  फूल सी नूर सी ॥

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by रमेश कुमार चौहान on October 2, 2013 at 7:42pm

जिंदगी का फलसफा बयानी सुंदर है । इसके लिये आपको ढेरो बधाई ......................................

मै क्षमा चाहते हुये कहना चाहता मुझे रदिफ काफिया समझ में नही आ रहा है ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2013 at 5:05pm

एक अलग ही प्रयोग है, जानकारों की राय चाहूँगा कि क्या शिल्पनुसार यह मान्य है । इस प्रस्तुति हेतु बधाई । 


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Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2013 at 3:35pm

आदरणीय बसंत भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही  है आपने , आपको हार्दिक बधाई !!

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 2, 2013 at 2:08pm

बहुत  ही सुन्दर रचना बनी है ! हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 12:50pm

 आदरणीय बसंत जी बहुत अच्छा प्रयास है आपका! आपको हार्दिक बधाई! सतत प्रयासरत रहे. चीज़ें अपने आप सही होने लगेंगी! 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 2, 2013 at 11:39am

आदरणीय बसंत भाई प्रथम प्रयास बहुत ही अच्छा हुआ है जिंदगी की किताब के कई पन्ने खोल दिए आपने कई रंग भर गए इस प्रस्तुति में, ग़ज़ल विधा पर आपको प्रयास करते देख बड़ी प्रसन्नता हो रही है सतत प्रयासरत रहें भाई जी. इस प्रयास पर ढेरों बधाई स्वीकारें.

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