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आँखें नम थी मगर मुस्कुराते रहे (ग़ज़ल )

दौरे गम में भी सबको हंसाते रहे .
आँखें नम थी मगर मुस्कुराते रहे .
किसमें हिम्मत जो हमपे सितम ढा सके .
वो तो अपने ही थे जो सताते रहे
जिन लबों को मुकम्मल हँसी हमने दी .
वो ही किस्तों में हमको रुलाते रहे .

उनको हमने सिखाया कदम रोपना .
जो हमें हर कदम पे गिराते रहे .

काश !मापतपुरी उनसे मिलते नहीं .
जो मिलाके नज़र फिर चुराते रहे .

गीतकार- सतीश मापतपुरी
मोबाइल -9334414611

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Comment by दुष्यंत सेवक on May 31, 2010 at 6:44pm
जिन लबों को मुकम्मल हँसी हमने दी .
वो ही किस्तों में हमको रुलाते रहे .
लाजवाब
सतीश जी यह आपने रोपना ही का प्रयोग किया है या ये कुछ त्रुटि है. मुझे यहाँ पैर रखना ज़्यादा सटीक लगता है...
खैर अव्वल है रचना ...बधाई
Comment by Admin on May 30, 2010 at 9:44am
दौरे गम में भी सबको हंसाते रहे .
आँखें नम थी मगर मुस्कुराते रहे ,
मापतपुरी जी बहुत ही सुंदर ही रचना है, हमेशा की तरह पुनः एक ससक्त अभिव्यक्ति, धन्यवाद,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 24, 2010 at 9:20pm
उनको हमने सिखाया कदम रोपना .
जो हमें हर कदम पे गिराते रहे .

bahut hi badhiya rachna hai satish bhai jee.......aur ye 2 line to aapne ekdam hi sahi likha hai....bahut hi khushi mili aapki ye rachna padhkar....aage bhi aapki rachna ki intrezaar me----PREETAM TIWARY

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 24, 2010 at 9:01pm
उनको हमने सिखाया कदम रोपना .
जो हमें हर कदम पे गिराते रहे .

सतीश भाई, बहुत ही सही कहा है आपने, एक कहावत भोजपुरी मे कहा गया है की "जेकरे खातिर चोरी कईनी उहे कहे चोरवा " बहुत ही बढ़िया लिखा है , बहुत बहुत धन्यबाद मापतपुरी भाई,
Comment by Biresh kumar on May 24, 2010 at 8:23pm
काश !मापतपुरी उनसे मिलते नहीं .
जो मिलाके नज़र फिर चुराते रहे .
-------------------------
badi khushi hui milkar apki rachna se mapatpuri jee
hum nazar nahi churayenge
agar yunhi apna dard-e-bayaan hame sunaate rahein!!!!

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