!!! सुख सभी तो चाहते हैं !!!
गजल बह्र - 2 1 2 2 2 1 2 2
प्रेम पूंजी बांटते हैं।
सुख सभी तो चाहते हैं।
दुःख अपना कौन बांटे,
साये पल्ला झाड़ते हैं।
सुख बड़े चंचल भटक कर,
पल में घर से भागते हैं।
रोशनी जब भी निकलती,
चांद - सूरज ताकते हैं।
फिर कभी उलझन न होती,
सांझ सुख मिल बांटते हैं।
चांदनी जब तरू में उलझी,
वृक्ष साया शापते हैं।
गर किसी ने की मुहब्बत,
धर्म मुश्किल सालते हैं।
कर्म की राहें सफल नित,
कृष्ण - अर्जुन बाचते हैं।
दुःख है तो दर्द मरू सम,
शांत मन सुख धारते हैं।
के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 मीना पाठक जी, आपके अपार स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 भण्डारी भाई जी, आपके अपार स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
आदरणीय केवल प्रसाद जी, सादर अभिवादन!
दुःख अपना कौन बांटे,
साये पल्ला झाड़ते हैं।... यही है जीवन ...
केवल भाई, छोटी बहर में कहन निभाना हमेशा चैलेंजिंग रहा है, आपने इस ग़ज़ल को निभा ले गयें हैं, मुझे बहुत अच्छी लगी यह ग़ज़ल, बधाई हो ।
दुःख अपना कौन बांटे,
साये पल्ला झाड़ते हैं।
बहुत बढ़िया गजल आदरणीय केवल जी
दुःख अपना कौन बांटे,
साये पल्ला झाड़ते हैं।......बहुत सुंदर
सुंदर रचना , बधाई स्वीकारें आदरणीय केवल जी
दुःख अपना कौन बांटे,
साये पल्ला झाड़ते हैं।.........बहुत खूब
बधाई
वाह वा , आदरणीय केवल भाई , छोटी बह्र मे बढ़िय़ा गज़ल कही !!
दुःख है तो दर्द मरू सम,
शांत मन सुख धारते हैं। ------------- क्या बात है !!
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