!!! बूट पालिश !!!
एक मानुष की
कहानी
पढ़ गया कुछ
ढेर सारा
कर वकालत बुध्दि खोयी।
हो गया पागल
फकीरा!
घोर कलियुग में
बेचारा!
प्रेम पूरित बात करता।
चोप! चप चप
बक-बकाता,
बूट पालिश का
समां सब
साथ रखता,... बूट पालिश!
चोप! चप चप बक बकाता,
दौड़ कर फिर
रूक गया वह
चाय पीना याद आया।
एक चाहत,
चाय पीना
पूछता है चाय
वाला
क्या? फकीरा जज बनेगा!
हंस - हंसाता, चाय वाला।
कुछ इशारा कर
बढ़ा था,
फिर किसी को
देख कर वह
चोप! चप चप बक-बकाता!
साब! पालिश....बूट पालिश
चाय पीने को
मिली जब
शांत मन फिर बक-बकाता!
बैठता वह
ईट पर तब
साब! पालिश...बूट पालिश,
साब! का जूता पुराना
फट फटा फट
साफ करता
बूट चम चम
कर दिया जब
साब! कुछ पल देखता बस!
हाथ में फुटकर
गिने कम
फेंक कर पैसे दिये।....वह!
चोप! चप चप बक बकाता
बीनता बस
रेजगारी।
बूट पालिश - बूट पालिश!
काल का मारा
फकीरा!
फिर किसी को देखकर
वह बक-बकाता, साब! पालिश....बूट पालिश!
तेज है मनु मन विकारी
सोच पागल की कहानी
आह!
मानुष की सजा क्या ?
एक - दूजे को बचा क्या ?
मर गई इंसानियत भी
चल अकेला
बक-बकाता
चोप! चप चप......चो......प।
बूट पालिश - बूट पालिश.......।।।
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0 मीना जी, आपने कविता के सभी भावों को पहचाना, मेरा प्रयास सफल हुआ । आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 अमन भाई जी, आपने कविता के सभी भावों को पहचाना, मेरा प्रयास सफल हुआ और सबसे बड़ी बात कि एक पागल के प्रति संवेदना को समझा। आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 जितेन्द्र भाई जी, आपने कविता के सभी भावों को पहचाना, मेरा प्रयास सफल हुआ । आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 राम शिरोमणि भाई जी, आपने एक पागल के प्रति संवेदना को समझा। आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 रविकर भाई जी, आपने कविता के सभी भावों को पहचाना, मेरा प्रयास सफल हुआ और सबसे बड़ी बात कि एक पागल के प्रति संवेदना को समझा। आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 अन्नपूर्णा जी, आपने एक पागल के प्रति संवेदना को समझा। आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,
//मर गई इंसानियत भी// ??
केवल भाई इस कविता में इंसानियत कैसे मर गई ? मैं नहीं समझा, हालाकि रचना एक शब्द चित्र छोड़ने में कामयाब है, बधाई ।
मानुष की सजा क्या ?
एक - दूजे को बचा क्या ?
मर गई इंसानियत भी
मानवीय चरित्र पर अति सुंदर प्रस्तुति !
आदरणीय केवल भाई , सुन्दर रचना , धीरे 2 गभीर करती हुई !! बधाई !!
बहुत सुन्दर .......बधाई
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