!!! मां शारदे !!! //हरिगीतिका छन्द//
तुम दिव्य देवी बृहम तनुजा हृदय करूणा धारिणी।
संगीत वीणा ताल सरगम धर्म बृहमा चारिणी।।
कर कमल धारण हंस वाहन ज्ञान पुस्तक वाचिनी।
अति मधुर कोमल दया समता प्रेम रसता रागिनी।।1
कल्याणकारी सत्यधारी श्वेत वसनं शोभनं।
संसार सारं कंज रूपं वेद ज्ञानं बोधनं।।
मन प्रीत प्यारी रीति न्यारी प्रकृति सारी धारती।
सब देव-दानव जीव-मानव शरण आते तारती।।2
उध्दार करती द्वेष हरती पाप-संकट काटती।
तुम तेज रूपं शक्ति स्रोतं देव भावं भारती।।
मां लक्ष्य मेरी शरण तेरी दीन सेवक पाप सा।
तुम कोष विद्या आदि-आद्या ज्ञान देती जाप सा।।3
सत सार सरला गर्व कमला शक्ति देवी दुर्गमा।
अति जार जारा कर्महारा मोक्ष दाती स्वर्ग मा।।
जय रूप देवी जयति देवी मान देही गर्व मां।
हे काल काली धर्म धारीं पाप-पापी गर्त मा।।4
के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 भण्डारी भाई जी, आपके अपार स्नेह और उत्सावर्धन हेतु आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार। सादर
आ0 जितेन्द्र भाई जी, आपके अपार स्नेह और उत्सावर्धन हेतु आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार। सादर
आ0 रविकर भाई जी, आपके अपार स्नेह और उत्सावर्धन हेतु आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार। सादर
केवल भाई , अनुपम रचना !! हार्दिक बधाई !!
अति सुंदर, बहुत बढ़िया रचना, हार्दिक बधाई आदरणीय केवल जी
हरिगीतिका सुन्दर रची, शुभ छंद अनुपम है सखे |
हर पंक्ति रस लेकर छकी, अरदास उत्तम है सखे-
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