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काल के चूल्हे पर

काठ की हांडी

चढ़ाते हो बार बार .

हर बार नयी हांडी

पहचानते नहीं काल चिन्ह को

सीखते नहीं अतीत से .

दिवस के अवसान पर

खो जाते हो

तमस के आवरण के भीतर

रास रंग और श्रृंगार में .

आँखों पर चढ़ा लिया

झूठ और ढकोसले का चश्मा.

अपनी कायरता को प्रगतिशीलता का नाम दे दिया.

तुम्हे साफ़ दिखाई नहीं देता.

तुम सच देखना भी नहीं चाहते .

क्षणिक स्वार्थों ने तुम्हे अँधा कर दिया.

पर याद रखना

निरपेक्षता , निष्क्रियता से बड़ा अपराध है .

हिजड़ों का भी एक अपना पक्ष होता है ..

…………. नीरज ‘नीर’

पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित ..

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Comment by Neeraj Neer on September 9, 2013 at 5:28pm

आ . सुधीर कुमार सोनी जी आभार.. 

Comment by Neeraj Neer on September 9, 2013 at 5:27pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लड़ी वाला जी हार्दिक आभार .

Comment by Neeraj Neer on September 9, 2013 at 5:26pm

अरुण भाई बहुत बहुत आभार.

Comment by Neeraj Neer on September 9, 2013 at 5:26pm

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय वंदना तिवारी जी..

Comment by Vindu Babu on September 9, 2013 at 5:13pm
मानव जीवन यथार्थ बयां करती हुई गहन प्रस्तुति!
आपको ढेरों बधाई आदरणीय नीरज जी!
सादर
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 2, 2013 at 9:38am

सचमुच आपने सही तथ्य उजागर किये है । आज यही तथाकथित प्रगतिशीलता रह गयी है ।
हार्दिक बधाई बधाई स्वीकारें नीरज कुमार नीर जी

Comment by sudhir kumar soni on September 1, 2013 at 10:54pm

सुंदर कविता है ,शुभकामनायें

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 1, 2013 at 12:24pm

लाजवाब लाजवाब नीरज भाई जी बेहद सुन्दर रचना मन प्रसन्न हो गया हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Neeraj Neer on September 1, 2013 at 9:18am

हार्दिक आभार आदरणीय वीनस केसरी जी . आपके कमेन्ट से हौसला बढ़ा है .

मैं काश वह सीख पाता जिसके आप उस्ताद हैं . मैं  बाबहर ग़ज़ल लिखना सीखना चाहता हूँ, अभी तक संभव नहीं हो पाया .. स्नेह बनाये रखिये .. 

Comment by Neeraj Neer on September 1, 2013 at 9:14am

आदरणीया  विजय  श्री जी आभार.. 

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