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!!! बने हम भोर-संध्या से!!!

विभा अब ढूंढ़ती किससे,
पढ़ाएं प्रेम की
पाती!
चपल सी आ गयी आभा,
चमकते शब्द
उपवन से।
पढ़ें पंछी, चहक चिडि़यां
धुनों में
गा रहे भौंरे।
कहे कोयल सुने सविता,
चमक कर
आ गयीं किरनें।
धरा पर छा गई मस्ती,
पवन इठला रही
उड़कर।
सुमन-शबनम मिली खिलकर,
गुलाबों की हसीं
बढ़कर।
बुलाती रोज दिनकर को,
हंसाती खूब
सर्दी में।
तराने ढ़ूढ़ते झरने,
उछलती
कूदती लहरें।
मिली मछली उड़ी तितली,
निशानी मिल
गयी छतरी।
दिशा जब लाल होती है,
थके पंछी
उड़े घर को।
जिया में डर बसा उनका,
ख्यालो में
पढ़े खत को।
कहानी यूं सिखाती है,
रवानी रोज
आती है।
विरहणी रात की रानी,
पिया दिनकर
मिलें दिन में।
रहे समरस सदा हरदम
कभी सुख है
कभी गम है।
लसे लाली कहे माली,
बने हम
भोर-संध्या से।।

के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 27, 2013 at 7:46pm

आ0 सौरभ सर जी,  आपके अपार स्नेह और आशीष वचन हेतु आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 27, 2013 at 7:43pm

आ0 नवादवी भाई जी,  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 27, 2013 at 7:42pm

आ0 आशीष भाई जी,  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार।  सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 27, 2013 at 3:35am

भूरि भूरि बधाई भाईजी.  अंतर्गेयता ने एकदम से ध्यान खींचा है.. वाह वाह !

शुभम्

Comment by राज़ नवादवी on August 26, 2013 at 10:45pm

बढ़िया और संगीतमय भी. बधाई हो.

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 26, 2013 at 8:13pm

बढ़िया प्रवाह पूर्ण रचना है भाई जी....
हार्दिक बधाई इस रचना के लिए !!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 26, 2013 at 8:02pm

आ0 शुभ्रा जी,   सादर प्रणाम!  प्रस्तुत कविता पर आपकी विशेष टिप्पणी से मेरा मान बढ़ गया । आपके स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 26, 2013 at 8:00pm

आ0 अरून अनन्त भाई जी,    प्रस्तुत कविता पर आपकी विशेष टिप्पणी से मेरा मान बढ़ गया ।  यह मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है।  आपके विशेष स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 26, 2013 at 7:56pm

आ0 शरदिन्दु सर जी,  सादर प्रणाम!  प्रस्तुत कविता से आपकी यात्रा की थकान दूर हुई।  यह मेरे लिए सुखद और परम सौभाग्य की बात है कि मैनें आपको पुनः तरोजाता महसूस कराया।  आपके विशेष स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 26, 2013 at 7:48pm

आ0 बृजेश भाई जी,    आपके विशेष स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

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