For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वह जो नहीं कर सकती है, वह कर जाती है .

वह जो नहीं कर सकती वह कर जाती है ...
घंटों वह अपनी एक खास भाषा मे हँसती है
जिसका उसे अभी अधूरा ज्ञान भी नहीं
उसके ठहाके से ऐसे कौन से फूल झड़ते है
जो किसी खास जंगल की पहचान है .... ...

जबकि उसकी रूह प्यासी है
और वह रख लेती है निर्जल व्रत 
सुना है कि उसके हाथों के पकवान
से महका करता था पूरा गाँव भर 
और घर के लोग पूरी तरह जीमते नहीं थे 
जब तक कि वे पकवान मे डुबो डुबो कर
बर्तन के पेंदे और 
अपनी उँगलियों को चाट नहीं लेते अच्छी तरह ........

खिलती हुई कली सी थी बेहद नाजुक
गाँव की एक सुन्दर बेटी 
घर के अंदर महफूज़ रहना भाता था उसे ........
पर वह चराती थी बछिया
ले जाती थी गाय और जोड़ी के बैल
सबसे हरे घास के पास
बीच जंगल में ...
एक रोज
दरांती के वार से भगाया था बाघ
छीन कर उसके मुंह का निवाला
उसने नन्ही बछिया को बचाया था …………………….
तब से वह खुद के लिए नहीं
बाघ से गाँव के जानवर बच्चों को बचाने
की बात सोचती थी
टोली मे सबसे आगे जाती थी जंगल
दरांती को घुमाते हुए ...............

उसे भी अंधेरों से लगता था बहुत डर
जैसे डरती थी उसकी दूसरी सहेलियां
पर दूर जंगलों से लकडिया लाते
जब कभी अँधेरा हुआ
खौफ से जंगल मे
लडकियां में होती बहस
उस नाहर के किनारे 
रहता है प्रेत .... .. 
कौन आगे कौन पीछे चले 
सुलझता नहीं था जब मामला
बैठ जाती थी लडकियां 
एक घेरे में
और कोई होता नहीं था टस से मस
भागती थी वह अकेले तब 
उस रात के घोर अँधेरे में
पहाड़ के जंगलों की ढलान मे 
जहां रहते थे बाघ और रीछ
और गदेरे के भूत .. ..
फिर हाथ मे मशाल ले 
गाँव वालों के साथ आती थी वापस 
पहाड़ मे ऊपर 
जंगल मे वापस .............

वह रखती थी सबका ख्याल घर मे
सुबह उनके लिए होती थी
उन्ही के लिए शाम करती थी
बुहारती थी घर
पकाती थी भोजन और प्यार का लगाती परोसा.
सुना कि उधर चटक गयी थी हिमनद
और पैरों के नीचे से पहाड़
बह गया था
बर्तन, मकान, गाय बाछी
खेत खलिहान
सब कुछ तो बह गया था ...............
कलेजे के टुकड़े टुकड़े चीर कर
निकला था वो सैलाब 
अपनों की आखिरी चीख
कैसे भूलती वह ...........
वह दहाड़ मार कर रोना चाहती है और
वह कतई हँसना नहीं चाहती है मगर
देखा है उसे
आंसू को दबा कर
लोगों ने
हँसते हुए
और झोपड़ी को फिर से
बुनते हुए .................

जानती है वह
बचा कुह भी नहीं 
सब कुछ खतम हो गया है ...
मानती है फिर भी
किसी मलबे के नीचे
कही कोई सांस बची हो ....
नदी के आखिरी छोर से
पुनर्जीवित हो 
कोई उठ खड़ा हो
और चला आये उस पहाड़ की ओर ... ....
इस मिथ्या उम्मीद पर
भले ही वह झूटे मुस्कुराती हो
पर एक आस का दीपक जलाती है
पहाड़ मे फिर से खुशहाली के लिए...............

पहाड़ की एक स्त्री थी वह   "मां"

~ nutan~

~ मौलिक अप्रकाशित 

Views: 723

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 8, 2017 at 9:26pm

बहुत ही सुंदर रचना | ऐसा प्रतीत हुआ जैसे शब्दों से चित्र उभर कर आ रहें हैं | हार्दिक बधाई आदरणीया |

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on September 23, 2013 at 8:00pm

आदरणीय सौरभ जी... आपका सादर धन्यवाद ..आपने गलत ढंग से पोस्ट हुई रचना को व्यस्थित तरीके से प्रक्स्षित किया ... आपका मेरी इस रचना पर यह टिप्पणी जरूर मुझे खुशी दी रहा है कि मेरी रचना उत्तीर्ण हुई... और मैं खुद को लिखने योग्य समझ रही हूँ ... आपको तहेदिल शुक्रिया ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 26, 2013 at 8:13pm

आदरणीया नूतन जी, आपकी संवेदनशील दृष्टि ने जिस सात्विकता से तड़प और अनुभूत के कचोटपन को शब्दबद्ध किया है वह आपके व्यक्तित्व का मुखर आयाम है. प्रस्तुत रचना अपनी दशा से आप्लावित करदेती है और अंग्रेज़ी के बॉलाड का प्रभाव देती है.

बहुत-बहुत बधाई आपकी इस कविता के लिए.

प्रस्तुत रचना गलत ढंग से पोस्ट हो गयी थी. कुछ टुकड़े दो बार पेस्ट हो गये थे. अब सुधार हो गया है. देख कर अनुमोदित कीजियेगा.

सादर

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on August 23, 2013 at 11:31am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी..

आदरणीय सौरभ अग्निहोत्री जी

आदरणीय जितेन्द्र गीत जी..

 आदरणीय अनुपमा बाजपई जी

आदरणीय विनीता शुक्ल जी

आदरणीय राम शिरोमणि जी ........ मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है कि मेरी यह रचना आपको भाई ... मेरे इस प्रोत्साहन के लिए आपका तहे दिल शुक्रिया .. 

Comment by ram shiromani pathak on August 20, 2013 at 2:13pm

जानती है वह
बचा कुह भी नहीं 
सब कुछ खतम हो गया है ...
मानती है फिर भी
किसी मलबे के नीचे
कही कोई सांस बची हो ....
नदी के आखिरी छोर से
पुनर्जीवित हो 
कोई उठ खड़ा हो
और चला आये उस पहाड़ की ओर ... ....
इस मिथ्या उम्मीद पर
भले ही वह झूटे मुस्कुराती हो/////////////मार्मिक अभिव्यक्ति बहुत बहुत बधाई आदरणीया नूतन जी

Comment by Vinita Shukla on August 20, 2013 at 11:16am

"इस मिथ्या उम्मीद पर

भले ही वह झूटे मुस्कुराती हो

पर एक आस का दीपक जलाती है

पहाड़ मे फिर से खुशहाली के लिए" अत्यंत सुन्दर, मार्मिक अभिव्यक्ति. बहुत बहुत बधाई नूतन जी.

Comment by annapurna bajpai on August 19, 2013 at 10:38pm
आदरणीया नूतन जी आपको इस सुंदर भावात्मक अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक शुभेच्छायें ।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 19, 2013 at 9:13pm

मर्मस्पर्शी रचना पर बधाई आदरणीया डा. नूतन जी

Comment by विजय मिश्र on August 19, 2013 at 5:58pm
हृदयस्पर्शी रचना
Comment by Sulabh Agnihotri on August 19, 2013 at 5:14pm

वाह नूतन जी ! एक-एक पंक्ति दिल को छू गयी। क्या कहूँ निश्शब्द हूँ !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
14 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday
PHOOL SINGH added a discussion to the group धार्मिक साहित्य
Thumbnail

महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकिमहर्षि वाल्मीकि का जन्ममहर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में बहुत भ्रांतियाँ मिलती है…See More
Apr 10

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service