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लघुकथा : सांप्रदायिक (गणेश जी बागी)

त्रिपाठी जी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टी के नेता हैं । सुबह-सुबह अख़बार के साहित्यिक कालम मे प्रकाशित एक कहानी को पढ़ कर भड़के हुए थे । लेखक ने कहानी में एक मक्कार पात्र का नाम अल्पसंख्यक समुदाय से लिया था । बस नेता जी को उस कहानी मे सांप्रदायिकता की बू आने लगी | उन्होंने फ़ोन कर आनन-फानन में अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोगो को बुला लिया । लेखक का पुतला आदि जलाकर विरोध प्रकट करने की बात तय हो गयी | 

घर के नौकर छोटू ने नेता जी को सूचना दी, "मालिक मालिक, कुछ लोग आप से मिलने आए हैं "  
"तुम उन लोगो को बरामदे मे बिठाओ, शरबत-पानी पिलाओ, मैं तैयार होकर आता हूँ "
नेता जी तैयार होकर निकलने ही वाले थे कि उनकी नज़र छोटू पर पड़ी, "अरे.. ये स्टील के गिलासों में क्या लेकर जा रहा है, रे.. ! " 
"मालिक शरबत है, आपने ही कहा था न !" 
"पगलाया है का..? " नेता जी उसपर गरजे, "शरबत स्टील के गिलासों मे क्यों लेकर जा रहा है ? दिखता नहीं, वो लोग दूसरे धर्म के हैं ?.. वहाँ आलमारी में शीशे के गिलास पड़ें होंगे, ले जा उस में.. . "

  • समाप्त 
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघु कथा : रमजान
 

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Comment by अरुन 'अनन्त' on August 19, 2013 at 11:56am

आदरणीय भ्राताश्री मन के भीतर उत्पन्न हो रहे जाति धर्मं भेद भाव ऊँच नींच का सुन्दर चित्रण आदरणीय भाई जी सत्य एवं सटीक लघु कथा हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by इमरान खान on August 19, 2013 at 11:44am

ओह! दिल में बहुत दूर तक असर कर रही यह लघु कथा, सत्य है ऐसे ही हैं आजकल के धर्मनिर्पेक्ष.

Comment by Sulabh Agnihotri on August 19, 2013 at 11:13am

हमारे दोहरे चरित्र पर करारा व्यंग्य ! बधाई !

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on August 19, 2013 at 10:45am

जाति के नाम पर फूट डाल कर राज करने वाली नीति, राजनीती  का भंडाफोड करती लघु कथा बहुत सशक्त 

Comment by aman kumar on August 19, 2013 at 10:14am

सत्य आधारित लघु कथा के लिए आपको साधुबाद बागी जी |सच तो यही है नेताओ के लिए सब कुछ वोट आधारित होता है उपयोगितावाद का सच्चा उद्धरण होते है ये लोग |....

आभार ....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 19, 2013 at 9:34am

आदरणीय गणेश जी 

साम्प्रदायिकता के इस चुभते हुए स्वरुप को आपने बहुत सुंदरता से लघुकथा में शब्दबद्ध किया है..

बहुत बहुत बधाई 

Comment by रविकर on August 19, 2013 at 9:33am

बढ़िया अभिव्यक्ति-
बधाई आदरणीय-बागी जी-


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 19, 2013 at 8:27am

अब तो धर्म शांति पाने का नही बल्कि सत्ता और लोकप्रियता पाने का ज़रिया बन गया है, अपने आप को बदले बिना सभी अपना स्वार्थ साधने में लगें हैं, आज के इन तथाकथित धर्म निरपेक्ष नेताओं की काली सच्चाई को उजागर करती इस लघुकथा के लिए आपको बधाई. और आपने जिस तरह एक विषय के अलग अलग पहलुओं को अपनी लघुकथाओं के ज़रिए सामने रखा है उसके लिए दिली दाद काबुल करें. 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 19, 2013 at 8:04am

आदरनीय बागी जी ..कितना बड़ा सन्देश छिपा है आपकी रचना में ...हर आदमी ने अपने फायदे के लिए तमाम कुछ किया पर अपने अंतर को बदलने की चेष्टा कभी नहीं की ..जब तक अंतर साफ़ नहीं होगा तब तक किसी बात का कोई फायदा नहीं होगा ..आपको ढेरो बधाई के साथ 

Comment by Abhinav Arun on August 19, 2013 at 6:12am

दर हकीकत है खांटी और सौ फ़ीसदी ... ऐसे सामाजिक सच सामने आने ही चाहिए श्री बागी जी , तभी इनका अनुकरण करने वालों की आँखें खुलेंगी | हमने भी बचपन में गाँव में ऐसी स्थितियों का महूब स्मरण है ... पर समय बदला है और सोच भी पर बहुतेरे अब भी बीती सदी में जे रहे हैं ... आपने लघु कतः के ज़रिये महती दायित्व का निर्वाह किया है बखूबी ..सशक्त कटाक्ष करती रचना के लिए बहुत बहुत बधाई !!

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