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कुछ स्वतंत्र लाइनें

आगे बढ़ती भारत माँ के, पैरों में चुभ रहे काँटे !
आओ हम मिल कर उसके, एक एक दर्द को बाँटे !

समता, करूणा, वैभवशाली, भारत माँ की शान निराली !
धर्म ,प्रांत , जाति में बँटकर, हमने इसकी आभा बिगाड़ी !

जिस किसी ने भारत माँ पर, बुरी निगाह गड़ाई है ।
हमारे सपूतों ने हिम्मत से, उन्हें गर्त दिखाई है।

हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई, इन नामों को बदलो भाई।
हम सब तो बस बन्दे है, इस झंझट में क्यूं पड़ते हैं।

कोई ना रहेगा पराया तब, सब अपने बन जायेंगे !
सब मिलकर जब अपना मजहब, प्यार, भाईचारा बनायेगे !

जब जब देष पर संकट आया, भाईचारा सबने दिखलाया ।
चाहे रोग हो या आपदा, मिलकर सबने दूर भगाया ।

हम सब भाई मिलकर ही, यह भ्रष्टाचार मिटायेंगे
सारे भारतवंशी मिलकर, यह दहश्तवाद भगायेंगें !

एक प्रण अब करना होगा, कभी नही अब झुकना होगा।
हम आगे बढ़ते जोयेंगे, दुश्मन  को धूल चटायेंगे।

अनेक दर्द जब उसने सहे हैं, तब जाकर हम बड़े हुए हैं ।
अब तो कर्ज चुकाना होगा, भाई चारा फैलाना होगा।

अब ना होगा काई मजहब, ना होगा कोई क्षेत्रवाद !
सबकी जाति प्रेम बनेगी, जब बढ़ेगा एक एक हाथ।

कोई मजहब कोई क्षेत्र हो, सबका अब बस यही ध्येय हो,
भारत माँ के कष्टों को अब, सदा के लिए मिटाना होगा !

हमारी प्रगति की राह में आते, हर रोड़े को हटाना होगा !
विश्व शान्ति का ध्वज फिर से, भारत माँ को थमाना होगा !

गुरू और मार्गदर्शक का, ताज फिर हथियाना होगा,
विज्ञान की नित नई खोज कर, विष्व जगत में छाना होगा !

माँ के सपूतों का बलिदान, व्यर्थ में नही गंवाना होगा !
औरो की भाषा में ही अब, उन्हें पाठ पढ़ाना होगा !

भोली भाली भारत माँ, जो ना समझे हिंसा को !
कुछ स्वार्थी लोगो ने मिलकर, लूटा पल पल इसको ।

! मौलिक एवं अप्रकाशित !

          

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Comment by aman kumar on August 14, 2013 at 2:34pm

भोली भाली भारत माँ, जो ना समझे हिंसा को !
कुछ स्वार्थी लोगो ने मिलकर, लूटा पल पल इसको ।बिलकुल सही ...सत्य ..

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