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चुप तो बैठे हैं हम मुरव्वत में - वीनस

एक ताज़ा ग़ज़ल ...

चुप तो बैठे हैं हम मुरव्वत में

जाएगी जान क्या शराफत में

 

किसको मालूम था कि ये होगा

खाएँगे चोट यूँ मुहब्बत में

 

पीटते हैं हम अपनी छाती क्यों
क्यों पड़े हैं हम उनकी आदत में

 

खून उगलूँ तो उनको चैन आए

आप पड़िए तो पड़िए हैरत में

 

बेहया हैं, सो साँसें लेते हैं

मर ही जाते तुम ऐसी सूरत में

 

अब नहीं आ रहा उधर से जवाब
लुत्फ़ अब आएगा शिकायत में

नाम उन तक पहुँच गया मेरा

अब तो रक्खा ही क्या है शुहरत में


ख़ाब में भी न सोच सकते थे

लिख के भेजा है उसने जो खत में


मैंने रोका था, ख़ाक माने आप

और पड़िए हमारी सुहबत में

जेह्न से वो नहीं उतरता है

हर घड़ी अब रहूँ इबादत में


ठोकरें खाऊंगा ... बहुत अच्छा !

और क्या क्या लिखा है किस्मत में ?



फाइलातुन मफ़ाइलुन फैलुन 
मौलिक व अप्रकाशित
- वीनस

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on July 5, 2013 at 1:50am

महिमा श्री जी आपको अंदाज़ पसंद आया जाँ कर बेहद खुशी हुई ... शहीद तो हम पहले ही हो चुके हैं बस् शहादत को खुद टुकड़ों में कैश किया जा रहा है ...

Comment by वीनस केसरी on July 5, 2013 at 1:48am

कुंती जी आशीर्वाद स्नेह बनाए रखें

Comment by वीनस केसरी on July 5, 2013 at 1:47am

जी राम शिरोमणि भाई आपकी बड़ी कृपा होगी मुझ पर ...

Comment by वीनस केसरी on July 5, 2013 at 1:47am

जितेन्द्र जी आपसे दाद पा कर मुझे बेहद खुशी हुई

बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by वीनस केसरी on July 5, 2013 at 1:46am

नीरज मिश्रा जी आपकी ज़र्रा नवाज़िश है ....

Comment by वीनस केसरी on July 5, 2013 at 1:45am

शुक्रिया गीतिका जी आपका शुक्रगुज़ार हूँ

Comment by वीनस केसरी on July 5, 2013 at 1:45am

बहुत शुक्रिया सौरभ जी
मैंने इस ग़ज़ल के मार्फ़त जान एलिया को खिराजे अकीदत पेश की है ...


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 5, 2013 at 12:36am

//चुप तो बैठे हैं हम मुरव्वत में

जाएगी जान क्या शराफत में// "हम+मुरव्वत"

//पीटते हैं हम अपनी छाती क्यों
क्यों पड़े हैं हम उनकी आदत में// आदत में "पड़ा" भी जाता है भाई ?

//खून उगलूँ तो उनको चैन आए

आप पड़िए तो पड़िए हैरत में//  "आप+पड़िए"

//बेहया हैं, सो साँसें लेते हैं

मर ही जाते तुम ऐसी सूरत में// ऊला में "हैं" और सानी में "तुम" की जुगलबंदी ?

//ख़ाब में भी न सोच सकते थे

लिख के भेजा है उसने जो खत में// "खाब+में"

Comment by सानी करतारपुरी on July 4, 2013 at 11:10pm

जनाब बढ़िया शेअर कहे हैं  ..

अब नहीं आ रहा उधर से जवाब 

लुत्फ़ अब आएगा शिकायत में 

नाम उन तक पहुँच गया मेरा

अब तो रक्खा ही क्या है शुहरत में  ... मुबारकबाद  
Comment by बृजेश नीरज on July 4, 2013 at 10:52pm

बहुत सुन्दर! हार्दिक बधाई!

कृपया ध्यान दे...

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