For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कश्ती को बस इक बार जताना है मुझे भी

जब तैर लिया, पार हो जाना है मुझे भी

 

जो अपने सिवा खास किसी को न समझते

कितना हूँ मैं दुश्वार बताना है मुझे  भी

 

तूफाँ  से यही बात कही, मैंने यहाँ पर

हर हाल चरागा ही जलाना है मुझे भी

 

अब छूट घटाओं को कभी दे नहीं सकता

पानी तो हर एक हाल पिलाना है मुझे भी

 

मत सोच सफ़र, पाँव मेरे बांध के रखना

जब वक्त कहे, लौट के आना है मुझे भी

 

जो आग लगाना ही बड़ा काम समझते

बस कह दो उसे,शहर बसाना है मुझे भी

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 659

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 2, 2013 at 5:53am
 सरिता जी 
आभार  आपका
सादर   
Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 2, 2013 at 5:52am
जितन्द्र जी,
 आदरणीय
आपके उत्साह वर्धन से तबियत खुस हो जाती है 
 सादर 
Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 2, 2013 at 5:51am
हाँ वीनस भाई,
आभार,
आपको देखता हूँ तो लगता  है बहुत पास हूँ 
सादर 
Comment by वीनस केसरी on July 2, 2013 at 1:59am

वाह वा डॉ साहब ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 1, 2013 at 7:09pm
"मत सोचसफ़र, पाँव मेरे बांधके रखना

जब वक्तकहे, लौटके आना है मुझेभी

जो आग लगाना हीबड़ा काम समझते

बस कहदो उसे,शहर बसाना है मुझे भी".......आदरणीय...बहुत ही शानदार गजल के लिए हार्दिक बधाई
Comment by Sarita Bhatia on July 1, 2013 at 1:55pm

बहुत खूब बधाई सर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 1, 2013 at 12:24pm

वाह बेहतरीन ग़ज़ल आदरणीय बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service