For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कश्ती को बस इक बार जताना है मुझे भी

जब तैर लिया, पार हो जाना है मुझे भी

 

जो अपने सिवा खास किसी को न समझते

कितना हूँ मैं दुश्वार बताना है मुझे  भी

 

तूफाँ  से यही बात कही, मैंने यहाँ पर

हर हाल चरागा ही जलाना है मुझे भी

 

अब छूट घटाओं को कभी दे नहीं सकता

पानी तो हर एक हाल पिलाना है मुझे भी

 

मत सोच सफ़र, पाँव मेरे बांध के रखना

जब वक्त कहे, लौट के आना है मुझे भी

 

जो आग लगाना ही बड़ा काम समझते

बस कह दो उसे,शहर बसाना है मुझे भी

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 659

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 10, 2013 at 7:41pm

आदरणीय डॉ. ललित कुमार जी सादर, मुझे गजल के बारे में बहुत जानकारी तो नहीं है मगर आपकी रचना पढ़कर अच्छा लगा. बहुत बहुत बधाई.

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 4, 2013 at 6:20am

और वीनस भाई

चर्चा ही इस्लाह है। सोचने वालों के लिए एक इशारा ही काफी होता है।
आप लोग जो भी कहते है, मैं धरती पर बैठ कर उसे गुनता रहता  हूँ। क्योंकि आप सभी मित्रगण 
एक नेक काम कर रहें हैं। 
Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 4, 2013 at 6:12am

वीनस भाई,

कोई भी रचना जब पोस्ट की जाती है तो रचनाकार की तरफ से पक्की ही होती है. 
लेकिन इस्लाह आते रहते हैं। शायरी में एक सुविधा है कि  यहाँ इस्लाह की परंपरा है।इससे फायदा है कि अशआर  में निखार आते रहते हैं। ऐसा बरसो तक चलता है . मिशाल के तौर पर , आतिश का एक कामयाब शेर देखें -
                सुना करते थे हम कि पहलू में दिल है 
                जो चीरा तो इक क़तर:-ए-खूं न निकला 
इसे जब उन्होंने अपने उस्ताद शैख़ ग़ुलाम हमदानी मुसहफ़ी को दिखाया तो उन्होंने  मिश्रा उला  को बदल कर - 
                      " बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल है" 
 कर दिया। यह शेर इतना कामयाब हुआ कि आजतक सबकी जुबान पर है.  फिर बदलते- बदलते  अब वही शेर -  
                बहुत  शोर सुनते थे पहलू में दिल है               
                जो चीरा तो इक क़तर:-ए-खूं न निकला 
इस तरह भी कहा जाता है। मेरे कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि इस्लाह के बाद भी ग़ज़ल उसी की रहती है जिसने लिखा है। यह सोचना ही ग़लत है कि  धींगा मुस्ती के बाद  ग़ज़ल औरो को हो जाती है.  कोई भी शायर इतना महान  नहीं होता कि  उसके शेर के शब्दों में बदलाव की गुंजाइश न रहती हो। हर आम-खास व्यक्ति के पास शब्दों का एक नायाब भंडार होता है, इस्लाह के बाद वही खजाना हाथ लगता है। तकनीकी ज्ञान और बात है लेकिन शब्द -ज्ञान हर किसी के पास अलग होता है यह उम्र और अनुभव के बाद ही आता है। मैं अगर दूसरों के अनुभवों से लेना चाहता हूँ तो ग़लत क्या है। मेरे कहने का अर्थ ही आपने और आदरणीय सौरभ भाई ने ग़लत लगा लिया। लगता है मैं अपनी बात आप सबो तक पहुंचाने  में नाकामयाब रहा। इसके लिए क्षमा प्रार्थी।   
Comment by वीनस केसरी on July 3, 2013 at 10:00am

// अभी मित्रों को धींगा मस्ती करने देता हूँ , //

डॉ साहब ग़ज़लनुमा रचना कह कर १ महीने के लिए मित्रों को धींगा मस्ती करने के लिए दे देने का आपका ये तरीका भी नायाब ही है 

मगर मुझे डर है अगर १ महीने की मियाद पूरी हो और आप अपने ही रचना को ग़ज़ल होने के बाद न पहचान सके तब क्या होगा ?
मेरे ख्याल से खुले मंच पर किसी रचना पर चर्चा हो सकती है इस्लाह नहीं ....
और न ही खुले मंच पर रचना १ महीने पगाई जा सकती है 
आप अपनी और से पका कर पेश करें कहीं कुछ कमी रह जायेगी तो मंच पर इंगित करने वाले हिचकिचाते नहीं हैं मगर ग़ज़ल कहने का प्रयास मिश्रित तो नहीं हो सकता है

है न !!!


बाकी आपने अपने लिए जो नियम रख छोड़ा हो उसका पालन करें ... मुझे अजीब लगा सो कह दिया 
अपनी नज़र में कच्ची रचना होने पर भी मंच पर प्रस्तुत करना अनुचित प्रतीत हुआ 

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 3, 2013 at 6:16am
जी सौरभ पाण्डेय जी आदरणीय 

मेरा कहना था कि मैं अभी इसमें खुद छेड़- छाड़  नहीं करने वाला हूँ,

 अभी मित्रों को धींगा मस्ती करने देता हूँ , जिससे बहुत कामयाब बातें छन कर आयेंगी .
क्योंकि यह सीखने सिखाने का मंच है इसलिए अभी सुधार की संभवना है। ग़ज़ल में निरंतर सुधार   अछि तरह पकने का तरीका भी यही है। आप जैसे आदरणीय का सुझाव मिलता है तो बदलाव आयेंगे  तो फिर इसे फाइनल कैसे कहा जाये।
सादर 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2013 at 6:54pm

आदरणीय ललितजी, पगने-पगाने के बाद ही तो कोई ग़ज़ल ग़ज़ल होती है और उसे आम किया जाता है. ऐसे नहीं तो.. ख़ैर..

यह सीखने-सिखाने का मंच है, आदरणीय. यहाँ नकारात्मक बातें कत्तई नहीं होतीं अलबत्ता रचनाओं का सकारात्मक विश्लेषण होता है. चूँकि अभी आप इस माहौल में नये हैं, कुछ सपाट बातें अजीब लगेंगी. ये शुरुआती दौर है, धीरे-धीरे आप रम जायेंगे.

किताब वाली बात जमी नहीं, सर. क्या ओबीओ के पन्ने अधपकी रचनाओं के लिए हैं ? तो फिर ऐसी रचनाओं पर एक पाठक को अपनी बातें कहने का हक़ है न, सर, ताकि रचना को पकने का खाद-पानी मिले.

आप कहते हैं कि आप इसमें कोई छेड़-छाड़ नहीं करेंगे. सर, बिना छेड़-छाड़ के या बिना सतत सुधार के तो कोई रचना या ग़ज़ल अपने आप पुख़्ता नहीं हो जाती. ऐसा हम सभी जानते हैं. सुझाव-सलाह की दरकार होती ही है न.

सादर

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 2, 2013 at 5:53pm
जी सौरभ पाण्डेय जी आदरणीय 
 कहन को थोड़ा और पगने के लिए , कम से कम एक महिना बाद इसे देखना होगा।
अभी तो ग़ज़ल ट्राइल पर है.  असली निखार  बाद में आता है।
अभी कोई छेड़-छड  नहीं करूंगा। पकने और सूखने के लिए छोड़ रखा है।
जब किताब में आएगी तो तब इसका असली रूप देखने में आएगा
सादर  
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 2, 2013 at 3:59pm

आदरनीय ललित जी

मत सोच सफ़र, पाँव मेरे बांध के रखना

जब वक्त कहे, लौट के आना है मुझे भी

 पूरी ग़ज़ल की ही जितनी तारीफ़ की जाए कम है लेकिन मुझे यह शेर बेहद पसंद आया ..सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2013 at 6:19am

आदरणीय ललितजी, इस ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें.

कहन को थोड़ा और पगने दिया गया होता तो उचित होता. शिल्प और मिसरों के वज़्न के लिहाज़ से पुख्ता ग़ज़ल हुई है.

सभी ग़ज़लकारों से अनुरोध रहता है कि वे अपनी ग़ज़ल पोस्ट करने के साथ उसके मिसरों के वज़्न अवश्य लिख दें.

सादर

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 2, 2013 at 5:55am
आपकी लेखनी पढता रहता हूँ,
अच्छी  लगती हैं।
 सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service