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खुदा से मिला के चला गया

वो आया था और सच्चाई बता के चला गया,
बुरा ना कहो उसे जो हाथ छुडा के चला गया|

वो भी भला था फ़क्त इक दुआ देके देख लो,
जो मेरी रूह को खुदा से मिला के चला गया|

मैं बादल था बरसना था कहीं खेतों की ज़मीं पे,
वो हवाओं को ही सागर में छुपा के चला गया|

सुना था कहीं इंसान बसते हैं यहीं ज़मीन पे,
वो आईने में मेरा चेहरा दिखा के चला गया|

दम आख़िरी था, मुस्कान चेहरे पे आ ही गयी,
हँसते हुए वो दुनिया को रुला के चला गया|

"मौलिक और अप्रकाशित"

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Comment by Sumit Naithani on June 20, 2013 at 8:52pm

sunder

Comment by वेदिका on June 20, 2013 at 8:29pm

मैं बादल था बरसना था कहीं खेतों की ज़मीं पे,
वो हवाओं को ही सागर में छुपा के चला गया| .......बहुत खूब 
Comment by vijay nikore on June 20, 2013 at 6:04pm

//दम आख़िरी था, मुस्कान चेहरे पे आ ही गयी,
हँसते हुए वो दुनिया को रुला के चला गया|//

बधाई।

विजय निकोर

Comment by coontee mukerji on June 20, 2013 at 2:22pm

मैं बादल था बरसना था कहीं खेतों की ज़मीं पे,
वो हवाओं को ही सागर में छुपा के चला गया|

सुना था कहीं इंसान बसते हैं यहीं ज़मीन पे,
वो आईने में मेरा चेहरा दिखा के चला गया|.................बहुत खूब.

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