For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐ दोस्त ! खुशतरीन वो मंज़र कहाँ गए

दोस्तो, एक और ग़ज़ल जो होते होते मुकम्मल हुई है, आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ जैसी लगे वैसे नवाजें   ....

ऐ दोस्त ! खुशतरीन वो मंज़र कहाँ गए
हाथों में फूल हैं तो वो पत्थर कहाँ गए

डरता हूँ मुझसे आज के बच्चे न पूछ लें
तितली कहाँ गईं हैं, कबूतर कहाँ गए

पुल जब से बन गया है नदी बेकरार है
बस्ती से नाखुदाओं के सब घर कहाँ गये

बातें तो हमसे करते थे दुनिया जहान की
जब वक्त आ गया तो वो तेवर कहाँ गये

दुनिया को जीत कर भी अलग क्या मिला उन्हें
सबको पता है मर के सिकंदर कहाँ गये

मंचों पे चुटकुलों से हुए हिट मुशाइरे
ग़ज़लें कहाँ गईं वो सुखनवर कहाँ गये


- वीनस
@ २०११
मौलिक व अप्रकाशित
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२

Views: 947

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 10:51am

डॉ आशुतोष जी 

आपका हार्दिक आभार 

Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 10:51am

जितेन्द्र पस्तारिया जी आपकी नवाजिश है, नज़रे इनायत के लिए शुक्रगुजार हूँ  

Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 10:50am

आबिद भाई ग़ज़ल आपको पसंद आई जान कर बेहद खुशी हुई 
आपका आभारी हूँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 7, 2013 at 6:27am

आपके तब और अब के गठन को स्वयं में समेटे यह ग़ज़ल किसी उस चित्र की तरह सामने आयी प्रतीत होती है जिसपर चितेरे के रंग-कर्म के गठन को महसूस किया जा सकता है. ओबीओ पर इस ग़ज़ल को साझा करना इस मंच के व्यवहार के अनुरूप है.

पुल वाला और बच्चे-तितली वाला तो कमाल के शेर हुए हैं.  और सिकंदर वाला शेर तो झनझना देता है.

दिल से दाद कुबूल करें.. .

Comment by बृजेश नीरज on June 6, 2013 at 11:57pm

लाजवाब! आपकी रचनायें हम लोगों के लिए सीखने का एक सुगम माध्यम होती हैं। आपको ढेरों बधाई!

Comment by MAHIMA SHREE on June 6, 2013 at 10:04pm

डरता हूँ मुझसे आज के बच्चे न पूछ लें
तितली कहाँ गईं हैं, कबूतर कहाँ गए ....

वाकई में आनेवाली पीढियां तितलियाँ , गौरैया, कबूतर सिर्फ किताबों में ही पढ़ पायेंगे ....

हर शेर लाजवाब .... बहुत -२ बधाई आपको



Comment by coontee mukerji on June 6, 2013 at 9:38pm

वीनस जी , ला.....जवाब माँग रहा हर गजल .....बहुत ही उम्दा .....डरता हूँ मुझसे आज के बच्चे न पूछ लें
तितली कहाँ गईं हैं, कबूतर कहाँ गए........./दुनिया को जीत कर भी अलग क्या मिला उन्हें
सबको पता है मर के सिकंदर कहाँ गये.........एक सच्चाई जो अक्सर नकारे जाते हैं मगर कब तक....?

सादर

कुंती

Comment by Shyam Narain Verma on June 6, 2013 at 5:24pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by shalini rastogi on June 6, 2013 at 5:02pm

क्या बात है वीनस केसरी जी .. हर अश्'आर खुद में लाजवाब लगा .. कहीं तंज तो कहीं दर्द से लबरेज .. बेहद उम्दा ! दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें |

Comment by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on June 6, 2013 at 3:01pm

आदरणीय वीनस जी,

वाकई हैरानी की बात है..गुनाहगारों की भीड़ में एक बेगुनाह का सवाल कि "हाथों में फूल हैं तो वो पत्थर कहाँ गए".. बहुत उम्दा पेशकश. मुबारकवाद कबूल करें. और आखिरी चोट भी जबरदस्त हुई है. हर शेर वाकई ग़ज़ल की जान है. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी ठीक है *इल्तिजा मस'अले को सुलझाना प्यार से ---जो चाहे हो रास्ता निकलने में देर कितनी लगती…"
16 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी सादर प्रणाम । ग़ज़ल तक आने व हौसला बढ़ाने हेतु शुक्रियः । "गिर के फिर सँभलने…"
18 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ठीक है खुल के जीने का दिल में हौसला अगर हो तो  मौत   को   दहलने में …"
30 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत अच्छी इस्लाह की है आपने आदरणीय। //लब-कुशाई का लब्बो-लुबाब यह है कि कम से कम ओ बी ओ पर कोई भी…"
38 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
10 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
17 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service