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ऐ दोस्त ! खुशतरीन वो मंज़र कहाँ गए

दोस्तो, एक और ग़ज़ल जो होते होते मुकम्मल हुई है, आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ जैसी लगे वैसे नवाजें   ....

ऐ दोस्त ! खुशतरीन वो मंज़र कहाँ गए
हाथों में फूल हैं तो वो पत्थर कहाँ गए

डरता हूँ मुझसे आज के बच्चे न पूछ लें
तितली कहाँ गईं हैं, कबूतर कहाँ गए

पुल जब से बन गया है नदी बेकरार है
बस्ती से नाखुदाओं के सब घर कहाँ गये

बातें तो हमसे करते थे दुनिया जहान की
जब वक्त आ गया तो वो तेवर कहाँ गये

दुनिया को जीत कर भी अलग क्या मिला उन्हें
सबको पता है मर के सिकंदर कहाँ गये

मंचों पे चुटकुलों से हुए हिट मुशाइरे
ग़ज़लें कहाँ गईं वो सुखनवर कहाँ गये


- वीनस
@ २०११
मौलिक व अप्रकाशित
२२१ / २१२१ / १२२१ / २१२

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 10:51am

डॉ आशुतोष जी 

आपका हार्दिक आभार 

Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 10:51am

जितेन्द्र पस्तारिया जी आपकी नवाजिश है, नज़रे इनायत के लिए शुक्रगुजार हूँ  

Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 10:50am

आबिद भाई ग़ज़ल आपको पसंद आई जान कर बेहद खुशी हुई 
आपका आभारी हूँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 7, 2013 at 6:27am

आपके तब और अब के गठन को स्वयं में समेटे यह ग़ज़ल किसी उस चित्र की तरह सामने आयी प्रतीत होती है जिसपर चितेरे के रंग-कर्म के गठन को महसूस किया जा सकता है. ओबीओ पर इस ग़ज़ल को साझा करना इस मंच के व्यवहार के अनुरूप है.

पुल वाला और बच्चे-तितली वाला तो कमाल के शेर हुए हैं.  और सिकंदर वाला शेर तो झनझना देता है.

दिल से दाद कुबूल करें.. .

Comment by बृजेश नीरज on June 6, 2013 at 11:57pm

लाजवाब! आपकी रचनायें हम लोगों के लिए सीखने का एक सुगम माध्यम होती हैं। आपको ढेरों बधाई!

Comment by MAHIMA SHREE on June 6, 2013 at 10:04pm

डरता हूँ मुझसे आज के बच्चे न पूछ लें
तितली कहाँ गईं हैं, कबूतर कहाँ गए ....

वाकई में आनेवाली पीढियां तितलियाँ , गौरैया, कबूतर सिर्फ किताबों में ही पढ़ पायेंगे ....

हर शेर लाजवाब .... बहुत -२ बधाई आपको



Comment by coontee mukerji on June 6, 2013 at 9:38pm

वीनस जी , ला.....जवाब माँग रहा हर गजल .....बहुत ही उम्दा .....डरता हूँ मुझसे आज के बच्चे न पूछ लें
तितली कहाँ गईं हैं, कबूतर कहाँ गए........./दुनिया को जीत कर भी अलग क्या मिला उन्हें
सबको पता है मर के सिकंदर कहाँ गये.........एक सच्चाई जो अक्सर नकारे जाते हैं मगर कब तक....?

सादर

कुंती

Comment by Shyam Narain Verma on June 6, 2013 at 5:24pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by shalini rastogi on June 6, 2013 at 5:02pm

क्या बात है वीनस केसरी जी .. हर अश्'आर खुद में लाजवाब लगा .. कहीं तंज तो कहीं दर्द से लबरेज .. बेहद उम्दा ! दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें |

Comment by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on June 6, 2013 at 3:01pm

आदरणीय वीनस जी,

वाकई हैरानी की बात है..गुनाहगारों की भीड़ में एक बेगुनाह का सवाल कि "हाथों में फूल हैं तो वो पत्थर कहाँ गए".. बहुत उम्दा पेशकश. मुबारकवाद कबूल करें. और आखिरी चोट भी जबरदस्त हुई है. हर शेर वाकई ग़ज़ल की जान है. 

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