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"दिल में उठता पीर देखो"

दिल में उठता पीर देखो
द्रोपदी का चीर देखो

मोल जिसका खो गया है
आँख का वो नीर देखो

दिल में जो सीधे लगे बस
शब्द के वो तीर देखो

फिर हुआ बलवा कहीं पे
खो गया जो वीर देखो

थी कभी नदियाँ यहाँ पर
बह गया जो छीर देखो

सांवरे को भूल कर के
आज राँझा हीर देखो

अनुराग सिंह "ऋषी"

मौलिक व अप्रकाशित रचना

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Comment

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Comment by Anurag Singh "rishi" on June 9, 2013 at 2:02pm

आभार है सर आपका साथ में नमन भी :-)

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 8, 2013 at 9:54pm

आदरणीय अनुराग जी सुन्दर मनमोहक रचना सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by Anurag Singh "rishi" on June 5, 2013 at 7:40am

वीनस जी ह्रदय से आभार आपका :-)

Comment by वीनस केसरी on June 4, 2013 at 9:23pm

अनुराग जी 
रचनाधर्मिता के लिए बधाई 

आपकी अन्य रचनाओं का इंतज़ार रहेगा 

Comment by Anurag Singh "rishi" on June 3, 2013 at 7:40pm

आभार आपका मैम :-)

Comment by annapurna bajpai on June 3, 2013 at 4:18pm

 badhiya bhavpurn kavita ke liye badhai .

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