For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहा-रोला गीत ==ग्रीष्म==

========ग्रीष्म=========

सूर्य गरजता गगन से, गिरा गर्म अंगार

धधके धूं धूं कर धरा, सूखी सरिता धार  

 

मचले मनु मन मार, मगर मिलता क्या पानी

ठूंठ ठूंठ हर ठौर, ग्रीष्म की गज़ब कहानी

उड़ा उड़ा के धूल, लपट लू आंधी चलती

बंजर होते खेत, आह आँखें है भरती

 

रिक्त हुए अब कूप भी, ताल गए सब हार

सूर्य गरजता गगन से, गिरा गर्म अंगार

 

पेड़ पौध परजीव , पथिक पक्षी पशु प्यासे

मृग मरीचिका देख, मचल पड़ते मनु प्यासे

वन उपवन सब सून, नहीं अब कोयल कूके

मनु मुख मौन मलीन, ग्रीष्म जब तन-मन फूँके

 

ज्यों ज्यों दिन चढ़ता विकट, भरता है हुंकार

सूर्य गरजता गगन से, गिरा गर्म अंगार

 

छोटी होती रात, दिन बड़े लम्बे होते

देख बुरे हालात, धनी निर्धन सब रोते

खंड खंड हर खंड, धरा दिखती है बंजर

सूखे ताल तडाग, भयानक है यह मंजर

 

वन उपवन सब सूखते, मचता हाहाकार

सूर्य गरजता गगन से, गिरा गर्म अंगार

 

पानी पीकर दीन, धनी पी कोला ठंडा

बुझा रहे हैं प्यास, फेल पर हर हथकंडा

छतरी थामे नार , दुपट्टा मुख में बाँधी  

चले किन्तु मुख लाल, तमाचे जड़ती आंधी

 

ज्ञान और विज्ञान अब, दिखते हैं लाचार

सूर्य गरजता गगन से, गिरा गर्म अंगार

 

बहे लगा के धार, पसीना पानी जैसे

क्षण क्षण देता मार, मिटायें गर्मी कैसे

नहिं भाते मिष्ठान, भा रहा पीना पीना

नीकी लगती छाछ, जूस शरबत पोदीना

 

सावन से आसा लगा , ताक रहे नर-नार

सूर्य गरजता गगन से, गिरा गर्म अंगार

 

संदीप पटेल “दीप”

 

 

Views: 962

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 1, 2013 at 10:18am

आप सभी आदरणीय और सम्मानीय सदस्यों और अग्रजों का इस नए प्रयोग को सराहाने और उत्साहवर्धन करने हेतु एक बार पुनः  ह्रदय की गहराइयों से धन्यवाद और आभार

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 12, 2013 at 9:44pm

ज्ञान और विज्ञान अब, दिखते हैं लाचार

सूर्य गरजता गगन से, गिरा गर्म अंगार

बहुत ही सुन्दर रचना !

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 8, 2013 at 9:38pm

सुन्दर रचना आदरणीय संदीप जी सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 4, 2013 at 4:30pm

आप सभी आदरणीय और सम्मानीय सदस्यों और अग्रजों का इस नए प्रयोग को सराहाने और उत्साहवर्धन करने हेतु ह्रदय की गहराइयों से धन्यवाद और आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

समयाभाव और अंतरजाल की सुविधा का अभाव होने की वजह् से बिलम्ब और प्रथक प्रथक धन्यवाद और आभार न प्रेषित कर पाने के लिए क्षमा प्राथी हूँ स्नेह बनाये रखिये

Comment by Yogendra Singh on June 3, 2013 at 10:34pm

बहुत सुंदर 

Comment by राजेश 'मृदु' on June 3, 2013 at 6:00pm

जय हो आदरणीय, पुन: एकबार आपका अद्भुत गीत पढ़ने का मौका मिला, सादर

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on June 2, 2013 at 1:36pm

वाह! वाह! आदरणीय भाई संदीप जी, इस सुन्दर, नवल प्रयोगधर्मी गीत पर सादर बधाई स्वीकारें....

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 2, 2013 at 11:27am

आहा अद्भुत सुन्दर मनोहारी हृदयस्पर्शी और क्या कहूँ मित्रवर आनंद आ गया धरा की प्यास बुझे न बुझे मेरा मन तो तृप्त हो गया भाई जी. जय हो भूरि भूरि बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 1, 2013 at 4:56pm

ग्रीष्मकाल का सजीव वर्णन, वाकई गर्मी मे ऐसी ही हालत हो जाती है, इस सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 1, 2013 at 3:26pm

बहुत सुन्दर दोहा-रोला जो गीत के रूप में पढ़ कर मन्त्र मुग्ध कर रहे है | जेष्ठ की दुपहरी में इस रचना ने कुछ प्यास बुझाने 

का काम किया है | दिल से हार्दिक बधाई भाई श्री संदीप कुमार पटेल जी | यधपि में अधिक जानकारी नहीं रखता, अपने मन 

किसंतुष्टि के लिए जानकारी करना चाह रहा हुए -

छोटी होती रात, दिन बड़े लम्बे होते -------------- लय भंग हो रही है, अगर "लम्बे होते दिन बड़े" तो कैसा रहता, आदरणीय 

देख बुरे हालात, धनी निर्धन सब रोते

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service