For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सर झुकाना नहीं आता

क्या करें, 

इतनी मुश्किलें हैं फिर भी

उसकी महफ़िल में जाकर मुझको

गिडगिडाना नहीं   भाता.....

 

वो जो चापलूसों से घिरे रहता है

वो जो नित नए रंग-रूप धरता है

वो जो सिर्फ हुक्म दिया करता है

वो जो यातनाएँ दे के हंसता है

मैंने चुन ली हैं सजा की राहें

क्योंकि मुझको हर इक चौखट पे

सर झुकाना नहीं आता...

 

उसके दरबार में रौनक रहती

उसके चारों तरफ सिपाही हैं

हर कोई उसकी इक नज़र का मुरीद

उसके नज़दीक पहुँचने के लिए

हर तरफ होड मची रहती है

और हम दूर दूर रहते हैं

लोगों को आगाह किया करते हैं

क्या करें,

इतनी ठोकरें खाकर भी मुझको

दुनियादारी निभाना नहीं आता......

 

 

 

 

Views: 411

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on May 10, 2013 at 12:40pm

आदरणीय इस सुन्दर रचना हेतु आपको बधाई!

Comment by विजय मिश्र on May 10, 2013 at 12:20pm
बेशुमार लज्जत है आपकी बातों में , दिल खोलकर कही है अपनी और अपने जैसों की बात अनवरजी , शुक्रिया .
Comment by seema agrawal on May 9, 2013 at 8:08pm

मैंने चुन ली हैं सजा की राहें

क्योंकि मुझको हर इक चौखट पे

सर झुकाना नहीं आता......एक खुद्दार और स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए शायद ये विकल्प गलत बात के आगे सर झुकाने से कहीं बेहतर है 

हार्दिक बधाई अनवर जी एक सच्ची रचना के लिए 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 8, 2013 at 2:05pm

आदरणीय अनवर सौहेल साहब सादर, बहुत सुन्दर रचना सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 8, 2013 at 9:58am

अपने मान सम्मान को जो गिरवी नहीं रखते वे कभी किसी के आगे गिडगिडाते नहीं है | इसी सारांश के साथ लिखी 

गयी सुन्दर रचना के लिए बधाई भाई श्री अनवर सुहैल जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 8, 2013 at 12:04am

किसी ख़ुद्दार की शख़्सियत वो क्या जाने जिनकी रीढ़ नहीं है.  या, एक अहसास यह भी कि जब मैं थका-गिरा-हारा हुआ होऊँ तो हे ईश्वर तुम याद तक न आना. तुम्हारे करम और नेमतों तले जीता हुआ मैं तुम्हारे सामने खुद को इतना असहाय नहीं देख सकता.

इसी भाव-दशा को जीती आपकी रचना के लिए बधाई, आदरणीय अनवर साहब.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 7, 2013 at 10:09pm

आ0 अनवर सुहैल जी,  सही बात है!  हम अपनी जरूरतों को प्रकट नही कर सकते हैं। हम समर्थ हैं।  ’इतनी ठोकरें खाकर भी मुझको,  दुनियादारी निभाना नहीं आता.....!’ जो करना है करें!  बधाई स्वीकारें।  सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
14 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
15 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
15 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
16 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
21 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service