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खुरदुरी हथेलियाँ 

कटी  फटी उंगलियाँ 
पच्चीस की उम्र में 
पचास के जैसी चेहरे पर
प्रौढ़ता की  लकीरें 
दस बीस इंटों से भरा तसला
सर पर ढोती 
बीच- बीच में दूर एक झाड़ी पर 
बंधे पुराने चिथड़ों से बने 
झूले पर नजर डालती ,
ना जाने उसका नन्हा 
कब भूख से बिलबिलाने लगे 
सोचकर अपने भीगे ब्लाउज को 
अपनी फटी धोती के पल्लू से छुपाती 
चढ़ी जा रही है  
हर सीढ़ी को  अपनी किस्मत 
की कहानियाँ सुनाती 
दूर कहीं से आवाज आ रही है 
मजदूर एकता जिंदाबाद 
मजदूर दिवस की बधाई हो !!!
******************************

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Comment by राजेश 'मृदु' on May 1, 2013 at 1:41pm

मजदूर दिवस पर मजदूर की ये बेचैन कर देने वाली तस्‍वीर है

हर सीढ़ी को  अपनी किस्मत 
की कहानियाँ सुनाती
ये पंक्तियां तो बहुत ही खास हैं । पूरी रचना में जो अन्‍तर्प्रवाह है जो दाह है उसे महसूस करें तो एक कुशल चित्रकार का चित्र उभरता है जो अपनी नपी-तुली भाषा में बड़े बेबाकी से मजदूर दिवस की उत्‍सवधर्मिता की धज्जियां उड़ा देता है, बहुत बधाई इस रचना पर, सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 1, 2013 at 1:17pm

आदरणीय विजय निकोर जी रचना के मर्म से प्रभावित हुए मेरा लिखना सार्थक हुआ ह्रदय से आभारी हूँ । 

Comment by vijay nikore on May 1, 2013 at 12:15pm

राज जी,

आपकी भावसिक्त कविता पढ़ कर भाव विभोर हो गया।

सादर,

विजय निकोर

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