भूत को क्यों याद करूँ
क्यों याद करूँ भूत को,
क्या दिया,
क्या सोचा था मेरे बारे में,
क्या रखा था भविष्य के लिए,
क्या अच्छा किया की,भूत को,
मैं याद करूँ ।
देखूंगा अपने भविष्य को,
सोचूंगा अपने भविष्य को,
कर्म करूँगा भविष्य के लिए,
संघर्ष करूँगा जीवन में,
सफल बनूँगा भविष्य में,भूत को क्यों,
मैं याद करूँ ।
छिपा होता है सब,
भविष्य की गर्त में ,
होगा वही जो भाग्य में लिखा है,
पर कर्म से बदल सकता है भाग्य,
कर्म पर ध्यान दूँगा,भूत को क्यों,
मैं याद करूँ ।
जो हुआ ,अच्छा हुआ,
जो हो रहा है,अच्छा हो रहा है,
जो होगा,अच्छा ही होगा,
श्रीकृष्ण का उपदेश है ये,
जब गीता है मेरे पास तो,भूत को क्यों,
मैं याद करूँ ।
हमारे चाहने से जब,
काम बनेगा नहीं,तब,
समझूँगा ईश्वर की मर्जी है,
कर्म करूँगा,सब ईश्वर पर छोडकर,
मिलेगा फल बाद में,पर भूत को क्यों,
मैं याद करूँ ।
भूत को याद कर क्यों,
काँटा बिछाऊँ,भविष्य पथ पर,
भीग जाऊँ अश्रुधारा में,
गुम हो जाऊँ निर्जन वन में,
प्रकाश को देखूंगा,क्यों भूत को,
मैं याद करूँ ।
क्या है भूत के पास,भविष्य के लिए,
क्या सांत्वना है भविष्य के लिए,
क्यों विश्वास करूँ,झूठे भूत पर,
क्यों फंसू,इसके मायाजाल में ,
अनुभव की मर्यादा याद कर,क्यों भूत को,
मैं याद करूँ ।
स्वार्थ मेरे अंदर था नहीं,
निःस्वार्थ सत्य खोज रहा था,
ज्वार भाटे के कटु थपेड़ों से,
जीवन सत्य का दीदार किया,
अब भूत को फिर क्यों,
मैं याद करूँ ।
Comment
आदरणीय अखिलेश जी सादर, बहुत सुन्दर भाव अतुकांत रचना है इसलिए शायद मैं उतना आनंद नहीं ले पाया. मगर सच है जिसे आगे बढ़ना है वह पीछे गुजरे पर पश्चाताप या ख़ुशी मनाने के बजाय आगे की राह की सुध ले. बहुत बहुत बधाई.
डॉ प्राची सिंह मैडम,गणेश जी,गीतिका जी ,सुविचार और सुझाव के लिए धन्यवाद ।आदरणीया कुन्ती जी के सुझाव पर मैं जरूर ध्यान दूँगा ।वैसे अच्छा रहता है कि हम आगे ही देंखे ।भूत पर चिंतन करने से समय की बर्बादी होती है ।
अखिलेश मिस्रा जी लगता है आपने इस रचना को बहुत गुस्से में लिखा है . अच्छा बताइये आपने अपने भूत को क्यों इतना नकारा
सिद्ध किया है .? मुझे लगता है आपको फिर से एक बार भूत को याद करनी चाहिये .आप अन्यथा न लें.मैंने सिर्फ अपना विचार प्रकट
किया है.सादर कुंती .
सुन्दर विचार सम्प्रेषण ......आदरणीय अखिलेश जी!
अतुकांत रचना ज्यादा लम्बी होने पर अपने उद्देश्य से भटकाव के डर में रहती है।
भूत के अनुभव के आधार पर हमारा वर्तमान खड़ा होना चाहिए जिसपर चढ़ कर भविष्य को सवारने का प्रयत्न किया जा सके, इस प्रयास पर बधाई ।
विगत को भूल आगत का स्वागत करने के खूबसूरत भाव समेटी रचना के लिए बधाई
अतुकांत कविता में बिम्बों का प्रयोग बहुत महत्वपूर्ण होता है... अन्यथा अभिव्यक्ति सपाटबयानी सी लगती है. निरंतर लेखन और पाठन ही इसे समझने में सहायक होते हैं...
सद्प्रयास के लिए बधाई
शुभेच्छाएँ
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