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हमको नवाज़ी ख़ुदा ने मकसूम शख्सियत ,

 

  Thai Massage

फरमाबरदार बनूँ औलाद या शौहर वफादार ,
औरत की नज़र में हर मर्द है बेकार .

करता अदा हर फ़र्ज़ हूँ मक़बूलियत  के साथ ,
माँ की करूँ सेवा टहल ,बेगम को दे पगार .

 

मनसबी रखी रहे बाहर मेरे घर से ,
चौखट पे कदम रखते ही इनकी करो मनुहार .

 

फैयाज़ी मेरे खून में ,फरहत है फैमिली ,
फरमाइशें पूरी करूँ ,ये फिर भी हैं बेजार .

हमको नवाज़ी ख़ुदा ने मकसूम शख्सियत ,
नादानी करें औरतें ,देती हमें दुत्कार .

 

माँ का करूँ तो बीवी को बर्दाश्त नहीं है ,
मिलती हैं लानतें अगर बेगम से करूँ प्यार .

बन्दर बना हूँ ''शालिनी ''इन बिल्लियों के बीच ,
फ़रजानगी फंसने में नहीं ,यूँ होता हूँ फरार .

 

 मौलिक व् अप्रकाशित

 

     शालिनी कौशिक
           [कौशल]
 

शब्दार्थ :फरमाबरदार -आज्ञाकारी ,बेजार-नाराज ,मक़बूलियत -कबूल किये जाने का भाव ,मनुहार-खुशामद,मनसबी-औह्देदारी ,फरहत-ख़ुशी ,फैयाजी-उदारता मकसूम -बंटा हुआ .फर्ज़ंगी -बुद्धिमानी .

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Comment by बृजेश नीरज on April 18, 2013 at 4:21pm

आपकी रचना पढ़कर मजा आ गया। बहुत बधाई आपको इस बेहतरीन रचना पर।

Comment by manoj shukla on April 18, 2013 at 9:55am
इस खूबसूरत गजल पर बधाई स्वीकार करें आदर्णीया कौशिक जी
Comment by shikha kaushik on April 17, 2013 at 10:21pm

bahut hi rochak prastuti .hardik aabhar

Comment by shalini kaushik on April 17, 2013 at 7:04pm

@RAM SHIROMANI JI AUR KEWAL PRASAD JI HARDIK DHANYAWAD.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 17, 2013 at 6:48pm

आदरणीया शालिनी कौशिक जी,  ’फैयाज़ी मेरे खून में, फरहत है फैमिली, फरमाइशें पूरी करूँ, ये फिर भी हैं बेजार’  अतिसुन्दर ।  बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by ram shiromani pathak on April 17, 2013 at 12:08pm

सुन्दर रचना!!!!हार्दिक बधाई 

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