For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पर्दे शर्म के सारे तार-तार हो गए हैं .

बेख़ौफ़ हो गए हैं ,बेदर्द हो गए हैं ,

हवस के जूनून में मदहोश हो गए हैं .

चल निकले अपना चैनल ,हिट हो ले वेबसाईट ,

अख़बारों के अड्डे ही ये अश्लील हो गए हैं .

पीते हैं मेल करके ,देखें ब्लू हैं फ़िल्में ,

नारी का जिस्म दारू के अब दौर हो गए हैं .

गम करते हों गलत ये ,चाहे मनाये जलसे ,

दर्द-ओ-ख़ुशी औरतों के सिर ही हो गए हैं .

उतरें हैं रैम्प पर ये बेधड़क खोल तन को ,

कुकर्म इनके मासूमों के गले हो गए हैं .

आती न शरम इनको मर्दानगी पे अपनी ,

रखवाले की जगह गारतगर हो गए हैं .

आये कभी है पूनम ,छाये कभी सनी है ,

इनके शरीर नोटों की अब रेल हो गए हैं .

कानून की नरमी ही आज़ादी बनी इनकी ,

दरिंदगी को खुले ये माहौल हो गए हैं .

मासूम को तडपालो  ,विरोध को दबा लो ,

जो जी में आये करने में ये सफल हो गए हैं .

औरत हो या मरद हो ,झुठला न सके इसको ,

दोनों ही ऐसे जुर्मों की ज़मीन हो गए हैं .

इंसानियत है फिरती अब अपना मुहं छिपाकर ,

परदे शरम के सारे तार-तार हो गए हैं .

''शालिनी'' क्या बताये अंजाम वहशतों का ,

बेबस हों रहनुमा भी अब मौन हो गए हैं .

[मौलिक व् अप्रकाशित ]

शालिनी कौशिक 

Views: 707

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shalini kaushik on May 15, 2013 at 11:57pm

THANKS TO DINESH JI ,KEVAL JI,ASHOK JI .

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 15, 2013 at 8:26pm

परिस्थितियों की पीड़ा को दर्शाती सुन्दर रचना आदरणीया शालिनी जी. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 15, 2013 at 9:22am

आ0 शालिनी जी, सुप्रभात! ‘औरत हो या मरद हो, झुठला न सके इसको!
दोनों ही ऐसे जुर्मों की ज़मीन हो गए हैं।
इंसानियत है फिरती अब अपना मुहं छिपाकर,
परदे शरम के सारे तार.तार हो गए हैं।‘...... बहुत ही सुन्दर...कटु सत्य!!! बधाई स्वीकारें, सादर,

Comment by dinesh solanki on May 15, 2013 at 8:17am

वेदना के साथ बहुत आक्रोश है, आपकी कविता में. ये ज़ज्बा और अभिव्यक्ति भी ज़रूरी है. 

Comment by shalini kaushik on May 13, 2013 at 11:56pm

thanks a lot yatindr pande ji and ram shiromani pathak ji .

Comment by yatindra pandey on May 13, 2013 at 11:35pm

kya baat hai mam saty vachn

Comment by ram shiromani pathak on May 13, 2013 at 9:23pm

sundar rachana shalini g

Comment by shalini kaushik on May 13, 2013 at 8:26pm

thanks pradeep ji 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 13, 2013 at 4:36pm

saty kaha aapne 

sundar gajal 

saadr badhai 

adarniyaa jii 

Comment by shalini kaushik on May 13, 2013 at 10:05am

aabhar jawahar ji meri abhivyakti ke marm par vichar karne ke liye .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
24 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
2 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
13 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
13 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
14 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service