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वक़्त बदल देता है दिल की भावनाओ को भी

वक़्त बहता रहा
कभी पानी की तरह
कभी हवा के मानिद
हम भी बहते रहे बहाव में इसके  
कभी फूल बनकर
कभी धूल बनकर .....
कब जिदगी के उस छोर से हम
इस छोर पर आ गये
वक़्त ने समझने ही नही दिया
बस सब आँखों को समझा दिया
बंद करते हैं आँखे तो
खुद को उसी मोड़ पर पाते हैं
जब भी चाहत होती है कि जी लें
अपनी उसी जिन्दगी को
जिसमे जिन्दगी हुआ करती थी 
तो झट से आँखे बंद कर लेते हैं
जब छोटे थे तो समय की चाल से बेखबर थे
सुबह माँ की आवाज़ से होती थी और 
माँ से कहानियाँ सुनते सुनते ही सो जाते थे 
आज भी समझ तो नही पाए
मगर महसूस कर लेते है
भागते वक़्त की चाल को
भांप लेते हैं ...........
बदलते वक़्त के साथ कैसे
बदल जाते हैं रिश्ते जान गये हैं
वक़्त बदल देता है दिल की भावनाओ को भी 
ये भी मान गये हैं ....
अब बस असर वक़्त का
मुझ पर भी हो जाये ...
बदला है दिल जैसे उनका
मेरा भी दिल बदल जाये ........!!!!!!

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Comment

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Comment by Saurabh Pandey on April 14, 2013 at 7:12am

कविता भावनाओं का शब्दिक प्रस्तुतिकरण होती है तो शब्दों के गठन और उनके स्वरूप के प्रति हम संवेदनशील हें. भाव सुन्दर हैं.

आपका प्रयास बना रहे.

Comment by Sonam Saini on April 8, 2013 at 2:12pm

आप सभी आदरणीय जनों को सादर नमस्कार ........
आप सभी ने रचना को इतना सराहा, मेरी भावनाओ को समझा इसके लिए दिल से आभारी हूँ मैं आप सभी की!
आप सभी के आशीर्वाद और सहयोग से यहाँ लिखना संभव हो पाता  है , आदरणीय प्राची मैम आपकी प्रतिक्रिया का हमेशा ही
बहुत ज्यादा इंतज़ार रहता है, विजय सर, राजीव सर, अशोक सर, एस के चौधरी व संदीप कुमार पटेल सर आप सभी का बहुत बहुत आभार व धन्यवाद ..........यूँ ही मार्गदर्शन करते रहें ...........धन्यवाद

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on April 5, 2013 at 6:14pm

आज भी समझ तो नही पाए मगर महसूस कर लेते है भागते वक़्त की चाल को भांप लेते हैं ........... बदलते वक़्त के साथ कैसे बदल जाते हैं रिश्ते जान गये हैं वक़्त बदल देता है दिल की भावनाओ को भी ये भी मान गये हैं .... बहुत सुन्दर पंक्तियाँ .

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 4, 2013 at 9:30pm

बंद करते हैं आँखे तो
खुद को उसी मौड़ पर पाते हैं
जब भी चाहत होती है कि जी ले
अपनी उसी जिन्दगी को
जिसमे जिन्दगी हुआ करती थी 
तो झट से आँखे बंद कर लेते हैं .............सच है हम जीन्दगी के कुछ  पलों को आसानी से भुला नहीं पाते और जो पल जींदगी ही थे तो फिर उसको कौन भुला सकता है. सुन्दर रचना आदरणीया सोनम जी.


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Comment by Dr.Prachi Singh on April 4, 2013 at 4:44pm

ज़िंदगी एक सतत प्रवाह का नाम है... परिवर्तन हर हाल में होता ही है, सभी की ज़िंदगी में होता है...

जब भी चाहत होती है कि जी ले 
अपनी उसी जिन्दगी को 
जिसमे जिन्दगी हुआ करती थी 
तो झट से आँखे बंद कर लेते हैं .........समय के साथ ही चलना और परिवर्तन को सहर्ष स्वीकार करना आगे बढने के लिए बहुत ज़रूरी है. ज़िंदगी को गुज़रे लम्हों की यादों में बार बार खोजना तकलीफदेह होता है और हाथ कुछ भी नहीं आता.

अब बस असर वक़्त का 
मुझ पर भी हो जाये ...
बदला है दिल जैसे उनका 
मेरा भी दिल बदल जाये ........!!!!!!..........दिल को बदलना नहीं होता, सिर्फ सोच को और नज़रिए को बदलना होता है, और मन को बुद्धि की तार्किकता के समक्ष झुकाना होता है. फिर अपना दिल बेबस नहीं अपने ही बस में होता है.  :)

आत्मउद्गारों की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति..

शुभेच्छाएँ

Comment by vijay nikore on April 4, 2013 at 4:43pm

बहुत अच्छे भाव पिरोए हैं। बधाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 4, 2013 at 3:38pm

वक़्त के साथ अच्छा तालमेल है आपका
इसके साथ साथ चलना कम लोगों को आता है
जिसको आता है वो खुश है
जिसको नही आता वो दुखी

बधाई हो आपको इस रचना हेतु

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