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सार/ललित छंद (16+12मात्रायें:- छन्नपकैया की जगह "आई होली छाई होली," का प्रयोग)

आई होली छाई होली, पवन चली मतवारी
रंग लगाते झूम झूम के, मस्त हुए नर नारी

आई होली छाई होली, रंग उड़े सतरंगी
भंग चढ़े है सर पे सबके, होती है हुड़दंगी

आई होली छाई होली, बुरा कोई न माने
रंगों का मौसम ये प्यारा, आता प्रीत बढ़ाने

आई होली छाई होली, भर भर के पिचकारी
कान्हा रंगों को बरसाते, भीगे राधा प्यारी

आई होली छाई होली, यौवन की ले हाला
रंग चटक मलते होता है, अंग अंग मतवाला

आई होली छाई होली, राग फाग सब गाते
मस्त हो रहे सुनके फाग़ें, स्वर भी रस बरसाते

आई होली छाई होली, भीगे चुनरी चोली
अंग लगा साजन रंगो को, सजनी हँस के बोली

आई होली छाई होली, मादक है अमराई
फूले रंग बिरंगे उपवन,धरती ले अंगड़ाई

आई होली छाई होली, इतराती है गोरी
रंग रूप निखरा है यौवन, होती जोरा ज़ोरी

आई होली छाई होली, सबको गले लगाते
छोटे बड़े सभी हिलमिल के, रंग गुलाल उड़ाते

संदीप पटेल "दीप"

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 22, 2013 at 9:34pm

सार छंद के बोल मधुर लगे, हार्दिक बधाई श्री संदीप कुमार पटेल जी 

Comment by ram shiromani pathak on March 22, 2013 at 2:37pm

पढ़ कर होली का आनन्द आ गया।वाह आदरणीय.................


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 22, 2013 at 12:29pm

सार छंद का यह प्रयोग बहुत रोचक और मधुर लगा 
हार्दिक बधाई प्रिय संदीप जी

Comment by बृजेश नीरज on March 21, 2013 at 7:00pm

बहुत सुन्दर!

Comment by vijay nikore on March 21, 2013 at 5:47pm

पढ़ कर होली का आनन्द आ गया।

 

विजय निकोर

Comment by राजेश 'मृदु' on March 21, 2013 at 4:26pm

वाह आदरणीय, सुंदर प्रयोग के साथ होलीमय कर दिया आपने

कृपया ध्यान दे...

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