For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रात ना कटे तो तुम ऐसा करना ....

रात ना कटे तो तुम ऐसा करना ..
काली लम्बी इस रात के 3 टुकड़े करना

इक टुकडा काट के आसमान को दे देना

फिर दूसरा टुकडा दे देना तुम चाँद को
बचा हुया वो एक आखिरी टुकडा

तुम अपने पास अपने सरहाने रख लेना,

लेटे लेटे उसमे देखना बीता वक़्त हमारा
वो मिलना ,वो जीना,वो बिछड़ना हमारा
इस लम्बे से सफ़र में वो छोटा सा टुकडा
देखना यूहीं पिघल के खुआब हो जायेगा

अभी बिछड़एंगे की सूरज उग आयेगा
मिलते बिछड़ते खुआब बनाते बनाते

रात का लम्बा सा सफ़र कट जायेगा
ऐसा ही करना जो नींद न आये
लम्बी सी रात के कर टुकड़े -टुकड़े

टुकडों में मुझसे मिल के रात काट लेना
और टुकड़ा टुकड़ा मुझसे मिल लेना ........!

रात ना कटे तो तुम ऐसा करना ......................

Views: 404

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश शर्मा on March 8, 2011 at 8:41pm
बहुत अच्छा लिखा है वीनस जी , बधाई .
Comment by rajendra kumar on March 3, 2011 at 8:16am
बहुत खूब...बेहतरीन काव्य कृति हेतु बधाई
Comment by Ajay Singh on January 29, 2011 at 9:44am

veeeeeeeeeeeeeeeeery

goooooooooooood

Comment by Sudhir Sharma on November 19, 2010 at 12:03am
बहुत खूब...क्या बात है

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 17, 2010 at 2:31pm
बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 16, 2010 at 10:04pm
बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन .....

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 16, 2010 at 8:25pm
फिर दूसरा टुकडा दे देना तुम चाँद को
बचा हुया वो एक आखिरी टुकडा,

एक बेहतरीन ख्यालात को आपने टुकड़ों मे बाँट कर बड़े ही खूबसूरती से पिरोई है, बेहतरीन काव्य कृति हेतु बधाई |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service