For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल "इस हुनर को देख शायर हो गया हैरान है"

=========ग़ज़ल =========

झूठ कहता बाप से माँ से हुआ अनजान है
भूल क्यूँ जाता है बेटा वो उन्ही की जान है

है दगा रग रग में जिसकी झूठ जिसकी शान है
दूर से पहचान लें वो इक सियासतदान है

मौन हर मौसम में वो रहता है गम हो या ख़ुशी
इस हुनर को देख शायर हो गया हैरान है

खूब भर लो धन घरों में याद रखना तुम मगर
आखिरी मंजिल सभी की है तो कब्रिस्तान है

हर तरफ ही लूट हत्या रेप ऐसे हो रहे
देख कर लगता नहीं ये मुल्क हिन्दुस्तान है

मार खा खा के न सुधरा आदमी इस मुल्क का
"दीप" शक होने लगा, क्या ये भी इक इंसान है ??

संदीप पटेल ”दीप”

Views: 656

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 7, 2013 at 4:16pm

आदरणीय डॉ साहब सादर प्रणाम
आपकी सरहना पाकर सुखद अनुभूति हो रही है
कोशिश कर रहा हूँ की कुछ कमियों को डोर किया जा सके
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए
आपका हृदय से धन्यवाद इस प्रतिक्रिया की टॉनिक के लिए सादर आभार

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 7, 2013 at 4:08pm

संदीप जी अच्छी रचना हुई है लेकिन आपके  रंग और छाप की कमी महसूस हो रही है  दिख रहा है...दिल से दुवा और दाद कुबूल हो! 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 7, 2013 at 4:00pm

आदरणीय प्रदीप सर जी सादर प्रणाम
रचना कर्म को सरहने हेतु आपका बहुत बहुत आभारी हूँ
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए अनुज पर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 7, 2013 at 3:50pm

खूब भर लो धन घरों में याद रखना तुम मगर 
आखिरी मंजिल सभी की है तो कब्रिस्तान है

फिर भी ये हाल ..

बधाई आदरणीय संदीप जी 

सादर 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 7, 2013 at 7:29am

आदरणीय वीनस सर जी , आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी , आदरणीया वेदिका जी , आदरणीया सावित्री जी , सादर प्रणाम

आपको ग़ज़ल में थोडा बहुत कुछ अच्छा लगा जी को सुकून मिला

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

शायद गुरुदेव आपने सच कहा है ये आग्रह मन में आता ही है लाख चाहने के बाद भी ...........अब के कोशिश करूँगा के और अच्छा लिखूं

Comment by वीनस केसरी on March 7, 2013 at 3:32am

संदीप जी मैं इस ग़ज़ल पर जो कहना चाहता था उसे कहने से पहले प्रतिक्रिया पढ़ने लगा और देखा कि सौरभ जी पहली ही मेरी बात कह चुके हैं ...
इसलिए अब उनके स्वर से मेरा स्वर मिला हुआ मानें ...

और स्पष्ट हो जाऊं,,, तो मुझे आपकी पिछली ग़ज़ल पर अपनी वो टिप्पणी याद आती हैं जिसमें मैंने आपसे निवेदन किया था कि
// कम लिखें मगर ऐसा ही लिखें ....//
खैर सब कुछ तो अच्छा ही नहीं हो सकता, बस आकलन करें और चुनिन्दा को ही साझा करें तो जियादा बढ़िया रहे ...

शुभकामनाएं

Comment by वेदिका on March 7, 2013 at 12:54am

बहुत सही लिखा .....
खूब भर लो धन घरों में याद रखना तुम मगर
आखिरी मंजिल सभी की है तो कब्रिस्तान है
खूबसूरत तीर ....
आदरणीय संदीप पाटिल 'दीप' जी
सादर वेदिका


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 7, 2013 at 12:15am

//किन्तु मुझे लगता है की कुछ गलती हुई है ............मैं समझ नहीं पा रहा हूँ //

ऐसा तो कुछ न था, संदीपभाई. लेकिन..

वैसे कहा है आपने तो इसी बहाने एक तथ्य को साझा करता चलूँ.

शरद जोशी अक्सर कहा करते थे कि मैं घटिया लेखक हूँ क्योंकि मैं प्रतिदिन लिखता हूँ.  इस पंक्ति के शब्दार्थ नहीं, इसके निहितार्थ और इसकी भावदशा को समझियेगा, भाईजी, नहीं तो, अन्यथा अनावश्यक भटकने या मन में अन्यार्थ के व्याप जाने का खतरा है.

लिखने के क्रम में सतत अभ्यास अत्यावश्यक है लेकिन वाहवाही के तुमुल नाद का आग्रह या इसकी अपेक्षा किसी उर्ध्वमुखी अभ्यासी को भटकाव की ओर उकसाती है. भटकन को प्राप्त कई-कई सदस्यों की तरह आपकी यही सीमा नहीं है. अब हम तो यही समझते हैं..

शुभेच्छाएँ.. .

Comment by Savitri Rathore on March 7, 2013 at 12:05am

मार खा खा के न सुधरा आदमी इस मुल्क का
"दीप" शक होने लगा, क्या ये भी इक इंसान है ??

अतिसुन्दर एवं सत्य दीप जी।इस सुन्दर रचना हेतु आपको बधाई हो।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 6, 2013 at 10:39pm
आदरणीय गुरुदेव् सादर प्रणाम
आपकी सराहना पाकर इस ग़ज़ल को कहना सार्थक सा लग रहा है
किन्तु मुझे लगता है की कुछ गलती हुई है ............मैं समझ नहीं पा रहा हूँ
बस मुझे आशा है की आप अग्रज मुझ अनुज को क्षमा कर देंगे
आपका स्नेह और आशीष यूँ ही बना रहे सादर आभार आपका

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
10 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
16 hours ago
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
16 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service