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जब उडाये लाल मौसम हो गया///गीत

बसंत के मौसम को समर्पित एक गीत 

अनछुए पल 

मुट्ठियों में घेर कर 

जब उड़ाए

लाल मौसम हो गया

नींद बिछड़ी

ख्वाब से

तो यक ब यक 

बड़बड़ाने सी लगीं 

खामोशियाँ .....

  टांग कर दीवार पर 

आँखों को अब 

भीड़ में चलने लगीं 

तन्हाइयां ....

मौन शब्दों के अधर 

जब हो गए   

और भी वाचाल 

मौसम हो गया

अनछुए पल 

मुट्ठियों में घेर कर 

महकते अहसास में 

लिपटे हुए

पल यूँ सिमटे 

मखमली सी 

छाँव में 

चन्दनों के जंगलों 

से ज्यों हवा 

घूम कर लौटी हो 

अपने गाँव में 

गीत जब मन की

नदी से बह चले  

खुद-ब-खुद लय ताल

मौसम हो गया 

अनछुए पल 

मुट्ठियों में घेर कर

 

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Comment

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Comment by vijay nikore on February 21, 2013 at 10:17am

आदरणीया सीमा जी:

 

सारा गीत ही इतना ज़ोरदार है कि मैं इस

अनिवर्चनीय प्रसन्नता को कहाँ से शूरू करूँ!

 

पंक्तियों के कभी इस समूह को और कभी

उस समूह को बार- बार पढ़ा, और फिर

उन्हें गुनगुनाने से और भी आनन्द आया!

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by seema agrawal on February 20, 2013 at 9:26pm

राजेश जी आपकी प्रतिक्रिया भी आपकी रचनाओं के समान ही खूबसूरत और मधुर है .........आप जैसे गीतकार का अनुमोदन पाकर बहुत अच्छा लगा ...आभार 

Comment by seema agrawal on February 20, 2013 at 9:23pm

आदरणीय लक्षमण जी आपकी स्नेहपूर्ण प्रतिकिया से मन प्रसन्न हो गया ..पर आप आदरणीय लिखने का अधिकार मेरे पास ही रहने दीजिये ..........

Comment by seema agrawal on February 20, 2013 at 9:21pm

मीना जी , राम शिरोमणि जी , वेदिका जी  और आरती जी हार्दिक आभार आप सभी का कि आप लोगों ने गीत को स्नेह दिया 

Comment by seema agrawal on February 20, 2013 at 9:19pm

प्रिय राजेश जी 

आप का अधिकार है ये, पूरे सम्मान के साथ आपकी बात का अनुमोदन करती हूँ  ...और बस इस समय तो आपके इस प्रेम में डूबी हुयी हूँ इसलिए और कुछ नहीं कहूंगी .ईश्वर मुझे बार-बार इस तरह के मौके दे यही मनाती हूँ :-))

Comment by seema agrawal on February 20, 2013 at 2:50pm

आदरणीय नादिर खान जी एवं अरुण आप लोगों की प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया अदा करती हूँ 

Comment by seema agrawal on February 20, 2013 at 2:41pm

हार्दिक अभिनन्दन संदीप आपका ......

आपका विचार मुट्ठियों में घेरने को स्वीकार नहीं कर पा रहा है ....मैं आपकी बात का विरोध किये बिना बस इतना कहूंगी कि प्रथमतयः यही पंक्तियाँ मन में आयीं और रचना का आधार बनी इसलिए इसे रखा ...और कई विकल्प बाद में सोचे पर उतना मन को छू नहीं सके .....बस इसलिए यही लिखा ....अगर कोई इससे बेहतर शब्द लगा तो निश्चित ही इसे बदल दूंगी ...खुश रहिये शुभकामनाएं 

Comment by राजेश 'मृदु' on February 20, 2013 at 2:19pm

बहुत ही सुंदर प्रस्‍तुति ही इतनी सुंदर कि मन छोड़ना भी चाहे तो मुट्ठियां खुलती ही नहीं और सारा आकाश स्निग्‍ध लाल हो जाता है एक मखमली आभा के साथ जो आंखों को चुभती नहीं बल्कि शीतल कर जाती है

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 20, 2013 at 1:25pm

सुन्दर भाव, सुन्दर प्रवाह, बहक गया मन, महक़ गया तन, 

         देख आपका जतन मन करे ये आपको नमन 

       आदरणीया सीमा जी, स्वीकारे बधाई ढेर सारी - 

                महकते अहसास में लिपटे हुए

                  पल यूँ सिमटे मखमली सी 

                              छाँव में 

                चन्दनों के जंगलों से ज्यों हवा 

                    घूम कर लौटी हो अपने 

                              गाँव में 

              गीत जब मन की नदी से बह चले  

                     खुद-ब-खुद लय ताल

                          मौसम हो गया 

Comment by Aarti Sharma on February 19, 2013 at 8:30pm

गीत जब मन की

नदी से बह चले  

खुद-ब-खुद लय ताल

मौसम हो गया 

बहुत खूब सीमा  जी ,बधाई स्वीकारें 

कृपया ध्यान दे...

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