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लक्ष्मी मेरे घर की .....-- मीना पाठक

आरती की थाली 
लिए हाथों में 
जाने कब से 
निहार रही हूँ बाट ....
आएगी वह 
जब सिमटी लाल-जोड़े में ,
मेहँदी रचे हाथों से 
दरवाज़े पर लगा कर 
हाथों के थाप ,
ढरकाती हुई अन्न का कलश
आलता लगे पैरों से
निशान बनाती करेगी 
प्रवेश मेरी बहू अन्नपूर्णा, 
मेरे घर में 
बन मेरे घर की लक्ष्मी ||

Views: 868

Comment

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Comment by Meena Pathak on February 19, 2013 at 12:56pm

सादर आभार राजेश कुमारी जी 

Comment by Meena Pathak on February 19, 2013 at 12:55pm

आदरणीय अजय जी .. आभार 

Comment by Meena Pathak on February 19, 2013 at 12:54pm

आदरणीय सौरभ जी रचना पसन्द करने के लिए आभार ..

Comment by Dr.Ajay Khare on February 19, 2013 at 12:08pm

meena ji bahu ki ye prateecha badia rachana badhai


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2013 at 12:08pm

एक उन्नत  मन से निकले उन्नत भाव बहुत अच्छा लगा पढ कर शुभकामनाये

Comment by vijay nikore on February 19, 2013 at 9:17am

आदरणीया लक्ष्मी जी,

 

अच्छी रचना के लिए बधाई।

 

विजय निकोर

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 18, 2013 at 8:21pm

वाह वाह एक प्यारी सी सासू माँ का प्यारा सा सपना ............बधाई हो

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 18, 2013 at 8:18pm

एक अलग ही मगर बेहद सुन्दर भाव की कविता  :)
सुन्दर कविता हेतु हार्दिक बधाइयाँ 'मीना जी'.........

Comment by Rekha Joshi on February 18, 2013 at 7:54pm

आलता लगे पैरों से
निशान बनाती करेगी 
प्रवेश मेरी बहू अन्नपूर्णा, 
मेरे घर में 
बन मेरे घर की लक्ष्मी ||,सच में बहू ही घर की लक्ष्मी होती है ,सुंदर रचना ,बधाई मीना जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 18, 2013 at 7:40pm

विगत का भविष्य की अगवानी सकारात्मक वातावरण के निर्माण का कारण हुआ करता है.

आपकी रचना के लिए हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

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