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भेडियों के राज में शेरों की हस्ती देखिये

==========ग़ज़ल===========

भेडियों के राज में शेरों की हस्ती देखिये
फिर रहे डंडा दिखाते सरपरस्ती देखिये

राजधानी में लगी यूँ आग गर्मी आ गयी 
हो रही सड़कों में अब पानी से मस्ती देखिये 

वो बुरा कहते नहीं सुनते नहीं देखें नहीं
खामखा ही हो रही बदनाम बस्ती देखिये

कीमतें यूँ तो बढीं हर चीज़ की वैसे मगर
देश भर में बिक रही है मौत सस्ती देखिये

चल पड़ीं लाशें सभी सरकार से हक़ मांगने
"दीप" खातिर मुल्क के ये सरपरस्ती देखिये 

संदीप पटेल "दीप"

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on December 28, 2012 at 1:59am

वो बुरा कहते नहीं सुनते नहीं देखें नहीं
खामखा ही हो रही बदनाम बस्ती देखिये

वाह संदीप भाई
जिंदाबाद जिंदाबाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 25, 2012 at 8:57pm

चल पड़ीं लाशें सभी सरकार से हक़ मांगने 
"दीप" खातिर मुल्क के ये सरपरस्ती देखिये  ----इस शेर ने सब कुछ कह दिया ,इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 25, 2012 at 10:38am

वाह वाह, सभी शेर जिंदाबाद , सामयिक हालत पर बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल कही है भाई, दाद कुबूल करें |

एक बार मकता फिर से देख लें ...

चल पड़ीं लाशें सभी सरकार से हक़ मांगने
"दीप" खातिर मुल्क के ये सरपरस्ती देखिये 

Comment by ajay sharma on December 24, 2012 at 11:11pm

भेडियों के राज में शेरों की हस्ती देखिये 
फिर रहे डंडा दिखाते सरपरस्ती देखिये   theek  thak

राजधानी में लगी यूँ आग गर्मी आ गयी 
हो रही सड़कों में अब पानी से मस्ती देखिये  bahut badia

वो बुरा कहते नहीं सुनते नहीं देखें नहीं 
खामखा ही हो रही बदनाम बस्ती देखिये  achha hai

कीमतें यूँ तो बढीं हर चीज़ की वैसे मगर 
देश भर में बिक रही है मौत सस्ती देखिये  umda

चल पड़ीं लाशें सभी सरकार से हक़ मांगने 
"दीप" खातिर मुल्क के ये सरपरस्ती देखिये wah wah wah wah wah wah wah wah 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 24, 2012 at 7:06pm
चल पड़ीं लाशें सभी सरकार से हक़ मांगने 
"दीप" खातिर मुल्क के ये सरपरस्ती देखिये   
बहुत सुन्दर सामयिक सार्थक अभिव्यक्ति के लिए बधाई संदीप भाई -
जलती लाशों पर भी सेक रहे है दलरोटियाँ 
राजनीति में धींगा मस्ती का ये आलम देखिये 
Comment by vijay nikore on December 24, 2012 at 6:09pm

कीमतें यूँ तो बढीं हर चीज़ की वैसे मगर
देश भर में बिक रही है मौत सस्ती देखिये

बिलकुल सही कहा है।

विजय निकोर

Comment by MAHIMA SHREE on December 24, 2012 at 5:58pm

राजधानी में लगी यूँ आग गर्मी आ गयी 
हो रही सड़कों में अब पानी से मस्ती देखिये ..

 

कीमतें यूँ तो बढीं हर चीज़ की वैसे मगर
देश भर में बिक रही है मौत सस्ती देखिये.....

क्या बात है संदीप जी .. वर्तमान परिस्थिति को क्या खूबसूरती से आपने पेश किया //बधाई आपको

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 24, 2012 at 4:35pm

आदरणीय अरुण अनंत भाई जी  सादर प्रणाम 
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 24, 2012 at 4:34pm

आदरणीय प्रदीप सर जी  सादर प्रणाम 
मेरी दोनों ग़ज़लों में आपकी दाद पा कर मन और अच्छा करने के लिए उत्साहित हो रहा है
अपना स्नेह यूँ ही अनुज पर बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 24, 2012 at 12:33pm

बहुत खूब सर जी बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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