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छुवन तुम्हारी यादों की भी न्यारी लगती है....
तुम हो तो यह सारी दुनिया प्यारी लगती है...

मन खोया रहता है तुम मे...
तुम हो मेरे अंतर्मन मे....
तुम से उत्प्रेरित मेरा मन...
तुमको करता नमन समर्पित
जीवन हो तुम. जीवन-धन भी,
सांसो मे तुम धड़कन मे भी...
दृष्टि तुम्हारी घोर तमस को झीना करती है...
तुम हो तो यह सारी दुनिया प्यारी लगती है...

क्या अंतर जो नही पास मे...
तुम हो मेरी सांस-सांस मे...
नेत्र बंद होते ही मेरे...
तुम दिखते हो आस-पास मे...
यह विराट अस्तित्व तुम्हारा...
मन मे भर जाता उजियारा....
जहाँ नही तुम रात वहीं अंधियारी दिखती है...
तुम हो तो यह सारी दुनिया प्यारी लगती है...

तुमसे यह जीवन आलोकित...
होंठ निशब्द..हृदय आंदोलित.
कंठ रुद्ध,मुखरित दृग दोनों...
तुमसे रोम-रोम रोमांचित...
डाला यह कैसा सम्मोहन ...
सुध -बुध खो बैठा मै मोहन...
प्रेम भरी यह तिरछी चितवन चित्त चुराती है...
तुम हो तो यह सारी दुनिया प्यारी लगती है....
डा. बृजेश कुमार त्रिपाठी

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 29, 2010 at 10:47am
प्रेम भरी यह तिरछी चितवन चित्त चुराती है...
तुम हो तो यह सारी दुनिया प्यारी लगती है....
आहा ,
क्या कहना यह प्रेम गीत कितनी प्यारी लगती है,
सरल सरस प्रवाह मे बहती एक सरिता लगती है,
ब्रिजेश सर , बहुत ही प्यारी रचना है, बेहतरीन कृति पर बधाई स्वीकार करे |

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